राशियां और धन


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मेष लगन:-मेष लगन वालों के लिये सूर्य शुभ,और धनदायक ग्रह है,क्योंकि त्रिकोण का स्वामी है,चन्द्र यद्यपि चौथी भाव का स्वामी है,है इसलिये मोक्ष का कारक होने के कारण अपनी नैसर्गिक शुभता को खो देता है,अत: पापी समझा जायेगा.अत: इसका छठे भाव या बारहवेम भाव में कमजोर होकर बिराजना धन तथा सुख के लिये अशुभ हो जायेगा,मंगल लगनेश है और अष्टमेश भी,हमेशा शुभ फ़ल देता है,बुध तीसरे और छठे भाव का स्वामी है,दोनो ही पापी भाव हैं,यदि केन्द्र या त्रिकोण में बलवान होगा,तो धन के सम्बन्ध में अशुभ फ़ल देगा.गुरु नवम और बारहवें भाव का स्वामी है,गुरु ट्रांसफ़र का प्रभाव रखने के कारण बहुत ही अच्छा फ़ल देगा,केन्द्र और मुख्य त्रिकोण में गुरु की स्थिति धन,भाग्य,राज्य कॄपा आदि देती है,शुक्र दूसरे और सातवें भाव का स्वामी है,लेकिन शुभ नही है,यदि बलवान होगा तो मंगल के प्रभाव के कारण हमेशा मानसिक और धन वाली प्रताडना देगा,लेकिन शुभ त्रिकोणाधिपति से सम्बन्ध रखता है,मतलब लगन से सम्बन्ध का प्रभाव शरीर के एचाहत,पंचम से सम्बन्ध परिवार से सम्बन्ध,और नवें भाव से सम्बन्ध पूर्वजों की मर्यादा और धर्म से लगाव रखना,यह सब मिलने पर अपना फ़ल जीवन के लिये शुभ देना चालू कर देता है.शनि दसवें और ग्यारहवें भाव का मालिक है,और दसवें भाव का मालिक होने के कारण मेहनत वाले कामों की तरफ़ ही भेजता है,घेरे मे रह कर काम करवाता है,पिता से मिलकर कार्य करने को मजबूर करता है,कार्य क्षेत्र मे सीमा को भान्ध कर काम करवाता है,अपने मानसिक विचारों को एक दायरे में रख कर काम करना पडता है.ग्यारहवें भाव का मालिक होकर संतान में कन्या संतान तब अधिक देता है,जब व्यक्ति अपने परिवार और अपने ही कुटुम्ब से स्वार्थी पन वाला भाव अपने ह्रदय में धारण करने के बाद अपनी ही हठधर्मी चलाता है.ग्यारहवें भाव का मालिक होने के कारण जो भी मित्र होते हैं सभी शनि की चालाकियों से पूर्ण होते है,संतान के भाव में शनि की सातवीं द्रिष्टि होने के कारण उसमे नकारात्मक प्रभाव अधिक हो जाते है,और संतान भाव से सातवीं राशि शनि की होने के कारण संतान की शादी,विवाह भी बहुत देर से हो पाते हैं,यही पांचवां भाव शिक्षा का माना जाता है,इसलिये शिक्षा के क्षेत्र मे बहुत ही रुकावटें आती हैं,पहले तो शिक्षा पूरी नही हो पाती है अगर किसी तरह से हो भी जावे तो ली गई शिक्षा काम के क्षेत्र मे प्रयोग नही हो पाती है.जातक को स्कूली पढाई से अधिक कार्य वाली शिक्षायें अधिक आकर्षित करती हैं,अगर कोई साथ वाला कोई काम करता हो तो जातक को कार्य के प्रति काफ़ी लग्न हो जाती है,वह किसी न किसी प्रकार से अपने जीवन मे धन को चालाकियों से कमाना चाहता है,और जब भी वह चालाकियों के कामों से धन कमाने की चेष्टा करता है,तो उसका पहले का कमाया हुआ धन बेकार की मे ही चला जाता है.
वॄष लगन:-भदावरी ज्योतिष सूर्य चौथे भाव का स्वामी है,अपनी नैसर्गिक अशुभता को खोकर शुभ हो जाता है,यदि केन्द्र और त्रिकोण में बुध आदि ग्रहों के साथ शुभ हो तो । चन्द्रमा तीसरे भाव का स्वामी है,इसलिये किसी ग्रह के द्वारा अशुभ होना और अशुभता से द्रिष्ट होना ठीक माना जाता है,चन्द्रमा यदि किसी भी तरह से बली है तो वह लगातार छोटी छोटी यात्राओं की तरफ़ मन को ले जायेगा,और अपने दूसरे भाव यानी कुन्डली का चौथा भाव अपने नगद धन के रूप मे खर्च करेगा,लगन से चौथा भाव सिंह राशि है,चन्द्र राशि से दूसरी और सिंह से दूसरी कन्या राशि आने के कारण जातक की माता अपनी पुत्रियों को अपने पराक्रम मे प्रयोग करती है या फ़िर जातक की संतान को कर्जा दुश्मनी और बीमारी में जाने के लिये प्रोत्साहित करती है,मंगल बारहवे भाव और सातवें भाव का स्वामी है,बारहवें भाव का स्वामी होने के कारण न किसी के भले में और न ही किसी के बुरे में गिना जाता है,ज्योतिष में इस प्रभाव को सम बोला जाता है.सातवें भाव का स्वामी होने के कारण मंगल कुछ शुभ माना जाता है,सातवें भाव में वॄश्चिक राशि होने से पति या पत्नी का लगाव कामोत्तेजना के लिये और काम सुख के लिये पूरा माना जाता है,अधिक वासना के चलते इस लगन वाले जातक अपनी काम पिपासा को शांत करने के लिये अधिकतर कॄत्रिम साधनों का प्रयोग करते देखे जाते हैं,मंगल की सातवीं राशि होने के कारण,कार्य क्षेत्र और बोलने के लिये यह राशि बहुत ही खतरनाक हो जाती है,मंगल के प्रभाव और वॄश्चिक राशि का प्रभाव जिसे बिच्छू की उपाधि भे दी जाती है,अधिकतर इस प्रकार के लोग अपनी बात को बिच्छू के डंक की तरह से प्रयोग करते हैं.और अपने बोलने के कारण परिवार या समाज मे अप्रिय हो जाते हैं,बुध इस लगन के दूसरे और पांचवें भाव का स्वामी होने के कारण बहुत ही शुभ कारक हो जाता है,दूसरे भाव का स्वामी होने के कारण बोली को नगद धन के रूप के द्वारा प्रयोग करता है,पंचम का स्वामी होने के कारण कन्या संतान को सबसे अधिक मान्यता देता है,और जीवन के शुरुआत से ही अपने द्वारा कर्जा,दुशमनी,और बीमारी पालने की शिक्षा ग्रहण करता है,अपना धर्म ही दूसरों का अपमान करने के लिये प्रयोग करता है,जातक का शुक्र लगन का मालिक होता है,और सप्तम का मालिक मंगल होने के कारण पति पत्नी में कभी कभी युद्ध जैसी स्थिति आ जाती है.बुध जातक की कुन्डली मे अगर जरा सा भी शुभ है तो अपना प्रभाव ठीक ही देगा.गुरु आठवें और ग्यारहवें भाव का मालिक है,इसलिये गुरु वॄष लग्न मे अशुभ माना जाता है,लेकिन यह अपनी द्रिष्टि से जिस भाव को भी देखेगा,वहाँ पर शुभ प्रभाव ही देगा.शुक्र लगन और छठे भाव का स्वामी है,अत: इसके दो प्रभाव जीवन मे मिलेंगे,लगन से तो शुभ माना जायेगा,लेकिन छठे भाव का मालिक होने के कारण पापी माना जायेगा,जातक की रोज की दौड पास की खरीद करने वाले स्थानों के लिये लगातार बनी रहेगी,और अधिकतर ब्याज और बीमारी के लिये परिवार के लोगों से जद्दोजहद करनी पडेगी.शनि नौवें भाव का स्वामी होने के कारण भाग्य का फ़ल देगा,या तो पूर्वजों की जायदाद को उखाड कर बरबाद कर देगा,या फ़िर लगातार बातचीत के अन्दर पुरानी बातों का ही राग होगा,खर्च भी पुरानी जायदाद के लिये ही होगा.मेहनत वाले कामों के करने से मन इस प्रकार के जातकों का घबडाता नही है,वे काम तो करते हैं मगर काम के अन्दर गर्मी होने के कारण वे हर काम को ताव से करते हैं,और जो भी समान काम करने वाला है,वह या तो इनके सामने काम कर ही नही पायेगा,या फिर काम के क्षेत्रों की कडवाहट से डर कर अपने को इनसे अलग कर लेगा.

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