व्यवसाय में सफलता का सटीक अध्ययन शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात अक्सर युवाओं के मन में यह दुविधा रहती है कि नौकरी या व्यवसाय में से उनके लिए उचित क्या होगा। इस संबंध में जन्मकुंडली का सटीक अध्ययन सही दिशा चुनने में सहायक हो सकता है। * नौकरी या व्यवसाय देखने के लिए सर्वप्रथम कुंडली में दशम, लग्न और सप्तम स्थान के अधिपति तथा उन भावों में स्थित ग्रहों को देखा जाता है। * लग्न या सप्तम स्थान बलवान होने पर स्वतंत्र व्यवसाय में सफलता का योग बनता है। * प्रायः लग्न राशि, चंद्र राशि और दशम भाव में स्थित ग्रहों के बल के तुलनात्मक अध्ययन द्वारा व्यवसाय का निर्धारण करना उचित रहता है। * प्रायः अग्नि तत्व वाली राशि (मेष, सिंह, धनु) के जातकों को बुद्धि और मानसिक कौशल संबंधी व्यवसाय जैसे कोचिंग कक्षाएँ, कन्सल्टेंसी, लेखन, ज्योतिष आदि में सफलता मिलती है। * पृथ्वी तत्व वाली राशि (वृष, कन्या, मकर) के जातकों को शारीरिक क्षमता वाले व्यवसाय जैसे कृषि, भवन निर्माण, राजनीति आदि में सफलता मिलती है। जल तत्व वाली राशि (कर्क, वृश्चिक, मीन) के जातक प्रायः व्यवसाय बदलते रहते हैं। इन्हें द्रव, स्प्रिट,
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चतुर्थ स्थान से जानें आशियाने का सुख अपना घर बनाना और उसमें सुख से रहना हर व्यक्ति का सपना होता है, मगर कई बार अथक प्रयत्नों के बावजूद या तो घर ही नहीं बन पाता, यदि बन जाए तो उसमें रहने पर सुख-शांति नहीं मिलती। आपके भाग्य में घर का सुख है या नहीं, इस बारे में कुंडली से स्पष्ट संकेत मिल सकते हैं। घर का सुख देखने के लिए मुख्यत: चतुर्थ स्थान को देखा जाता है। फिर गुरु, शुक्र और चंद्र के बलाबल का विचार प्रमुखता से किया जाता है। जब-जब मूल राशि स्वामी या चंद्रमा से गुरु, शुक्र या चतुर्थ स्थान के स्वामी का शुभ योग होता है, तब घर खरीदने, नवनिर्माण या मूल्यवान घरेलू वस्तुएँ खरीदने का योग बनता है। गृह-सौख्य संबंधी मुख्य सिद्धांत 1 . चतुर्थ स्थान में शुभ ग्रह हों तो घर का सुख उत्तम रहता है। 2 . चंद्रमा से चतुर्थ में शुभ ग्रह होने पर घर संबंधी शुभ फल मिलते हैं। 3 . चतुर्थ स्थान पर गुरु-शुक्र की दृष्टि उच्च कोटि का गृह सुख देती है। 4 . चतुर्थ स्थान का स्वामी 6, 8, 12 स्थान में हो तो गृह निर्माण में बाधाएँ आती हैं। उसी तरह 6, 8, 12 भावों में स्वामी चतुर्थ स्थान में हो तो गृह सुख बाधित हो जाता है। 5 .
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जन्मपत्रिकामेंशिक्षाकेयोग आज जीवन के हर मोड़ पर आम आदमी स्वयं को खोया हुआ महसूस करता है। विशेष रूप से वह विद्यार्थी जिसने हाल ही में दसवीं या बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की है, उसके सामने सबसे बड़ा संकट यह रहता है कि वह कौन से विषय का चयन करे जो उसके लिए लाभदायक हो। एक अनुभवी ज्योतिषी आपकी अच्छी मदद कर सकता है। जन्मपत्रिका में पंचम भाव से शिक्षा तथा नवम भाव से उच्च शिक्षा तथा भाग्य के बारे में विचार किया जाता है। सबसे पहले जातक की कुंडली में पंचम भाव तथा उसका स्व
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ग्रह निर्धारित करते हैं आपका व्यक्तित्व (भाग 3) पिछले दो लेखों भाग 1 और भाग 2 के माध्यम से आपने यह जाना कि मानव मस्तिष्क जो कि ज्योतिष अनुसार 42 विभिन्न केन्द्रों मे विभाजित है, जिन के द्वारा मनुष्य के अन्दर विभिन्न प्रकार के गुण-दोषों का विकास होता है। अब इस पोस्ट के जरिए ये समझने की चेष्टा करते हैं कि जन्मकुंडली में किस प्रकार विभिन्न ग्रह अपनी स्थिति के द्वारा इन केन्द्रों को स्पंदित करके, मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्धारण करते हैं । 1 . अगर सप्तमेश स्वगृ्ही होकर सप्तम स्थान में ही बैठा हो अथवा तीसरे भाव का स्वामी इस स्थान में स्थित हो तो वह मन में तीव्र अभिलाषाओं की उत्पत्ति का कारण बनता है। ऎसे व्यक्ति के मन मस्तिष्क में असीम ईच्छाएं निरन्तर जन्म लेती रहती हैं। अनुभव सिद्ध है कि चपटे सिर वाले जातक की अभिलाषाएं अधिक होती हैं और तंग सिर वाले की कम। 2 .यदि कुंडली में पांचवें भाव का स्वामी अष्टम स्थान में स्थित हो तो वह मस्तिष्क के अष्ट्म भाग को स्पंदित करते हुए प्रभावित करता है। जिससे जातक के अन्दर दृ्ड निश्चयी प्रवृ्ति का प्रादुर्भाव होता है। ऎसे व्यक्तियों में भीषण से भीषण मुसीबत से
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तुला,वृ्श्चिक,धनु,मकर,कुंभ तथा मीन राशीयों का स्वभावगत जीवन फल चंद्रमा के प्रभाव अनुसार ही किसी भी व्यक्ति की आदतें और रूचियां निर्धारित होती हैं। भारतीय ज्योतिष में चंद्रमा और सूर्य का विशेष महत्व है। क्योंकि इन्हीं के आधार पर काल गणना, सोलह संस्कार, मुहूर्त, तिथि, करण, योग, वार और नक्षत्रों की गणना की जाती है। इनमें भी चंद्रमा को विशेष महत्व प्राप्त है। इसका मुख्य कारण चंद्रमा की गतिशीलता है।यह सवा दो दिन में अपनी राशि परिवर्तित कर लेता है। इन सवा दो दिनों में विश्व में कहीं भी किसी प्राणी का जन्म हो ज्योतिष पद्धति अनुसार वही उसकी राशि होगी, जबकि पाश्चात्य ज्योतिष में सूर्य की राशि से अध्ययन किया जाता है। राशि निर्धारण की भारतीय पद्धति अधिक सूक्ष्म और वैज्ञानिक है। चूंकि चंद्रमा पृथ्वी का निकटस्थ उपग्रह है। यह मन की कल्पनाओं की भांति गतिशील है। इसीलिए वेदों में इसे "चंद्रमा मनसो जात:" कहा है। चंद्रमा की द्वादश राशि अनुसार आपकी आदतें और रूचि कैसी होती हैं, आईए जानते हैं तुला,वृ्श्चिक,धनु,मकर,कुंभ और मीन राशी के बारे में- तुला राशि: तुला राशि वाले सहायता एवं सहयोग करने वाले
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मेष,वृ्ष,मिथुन,कर्क,सिंह तथा कन्या राशीयों का स्वभावगत जीवन फल चंद्रमा के प्रभाव अनुसार ही किसी भी व्यक्ति की आदतें और रूचियां निर्धारित होती हैं। भारतीय ज्योतिष में चंद्रमा और सूर्य का विशेष महत्व है। क्योंकि इन्हीं के आधार पर काल गणना, सोलह संस्कार, मुहूर्त, तिथि, करण, योग, वार और नक्षत्रों की गणना की जाती है। इनमें भी चंद्रमा को विशेष महत्व प्राप्त है। इसका मुख्य कारण चंद्रमा की गतिशीलता है।यह सवा दो दिन में अपनी राशि परिवर्तित कर लेता है। इन सवा दो दिनों में विश्व में कहीं भी किसी प्राणी का जन्म हो ज्योतिष पद्धति अनुसार वही उसकी राशि होगी, जबकि पाश्चात्य ज्योतिष में सूर्य की राशि से अध्ययन किया जाता है। राशि निर्धारण की भारतीय पद्धति अधिक सूक्ष्म और वैज्ञानिक है। चूंकि चंद्रमा पृथ्वी का निकटस्थ उपग्रह है। यह मन की कल्पनाओं की भांति गतिशील है। इसीलिए वेदों में इसे "चंद्रमा मनसो जात:" कहा है। चंद्रमा की द्वादश राशि अनुसार आपकी आदतें और रूचि कैसी होती हैं,आईए जानते हैं-मेष,वृ्ष,मिथुन,कर्क,सिंह,कन्या राशीयों के बारे में मेष राशि : चंद्रमा की इस राशि पर स्थिति से व्यक्ति का त
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राशियां और धन [ मेष लगन :-मेष लगन वालों के लिये सूर्य शुभ,और धनदायक ग्रह है,क्योंकि त्रिकोण का स्वामी है,चन्द्र यद्यपि चौथी भाव का स्वामी है,है इसलिये मोक्ष का कारक होने के कारण अपनी नैसर्गिक शुभता को खो देता है,अत: पापी समझा जायेगा.अत: इसका छठे भाव या बारहवेम भाव में कमजोर होकर बिराजना धन तथा सुख के लिये अशुभ हो जायेगा,मंगल लगनेश है और अष्टमेश भी,हमेशा शुभ फ़ल देता है,बुध तीसरे और छठे भाव का स्वामी है,दोनो ही पापी भाव हैं,यदि केन्द्र या त्रिकोण में बलवान होगा,तो धन के सम्बन्ध में अशुभ फ़ल देगा.गुरु नवम और बारहवें भाव का स्वामी है,गुरु ट्रांसफ़र का प्रभाव रखने के कारण बहुत ही अच्छा फ़ल देगा,केन्द्र और मुख्य त्रिकोण में गुरु की स्थिति धन,भाग्य,राज्य कॄपा आदि देती है,शुक्र दूसरे और सातवें भाव का स्वामी है,लेकिन शुभ नही है,यदि बलवान होगा तो मंगल के प्रभाव के कारण हमेशा मानसिक और धन वाली प्रताडना देगा,लेकिन शुभ त्रिकोणाधिपति से सम्बन्ध रखता है,मतलब लगन से सम्बन्ध का प्रभाव शरीर के एचाहत,पंचम से सम्बन्ध परिवार से सम्बन्ध,और नवें भाव से सम्बन्ध पूर्वजों की मर्यादा और धर्म से लगाव रखना,यह सब
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ग्रह निर्धारित करते हैं आपका व्यक्तित्व ईश्वर नें इस ब्राह्मंड को पूर्णतय: स्वचालित बनाया है। इसमे विधमान समस्त ग्रह अपने निश्चित मार्ग पर निश्चित गति से निरंतर भ्रमणशील रहते हैं। और भ्रमण के दौरान ये किसी व्यक्ति की जन्मकुडंली के जिस भाव में स्थित होते हैं. उसी से सम्बद्ध उस व्यक्ति के मस्तिष्क के भाग को प्रभावित करते हैं। आज के वैज्ञानिक, डाक्टर, शरीर रचना विशेषज्ञ, मनोरोग चिकित्सक इत्यादि भी एक स्वर में स्वीकारने लगे हैं कि मानव मस्तिष्क में सोचने, सीखने, याद रखने, अनुभव करने, प्रतिक्रिया देने आदि अनेक मानसिक शक्तियों तथा प्रक्रियायों के अलग अलग केन्द्र हैं। यूं तो मानव मस्तिष्क में सहस्त्रों भाग हैं, जिनमे असंख्य सूक्ष्म नाडियां होती है। किन्तु वैदिक ज्योतिष अनुसार मस्तिष्क को ४२ भागों में विभाजित किया गया है। जिसके प्रथम भाग में कामेच्छा, द्वितीय में विवाह इच्छा, तृ्तीय में वात्सल्य एवं प्रेमानुराग, चतुर्थ में मैत्री एवं विध्वंस, पंचम में स्थान प्रेम(अपनी जन्मभूमी एवं देश प्रेम), छठे भाग में लगनपूर्ण समर्पण, सातवें में अभिलाषा, आठवे भाग में दृ्डता(विचारों की मजबूती),नवम भाग में प
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ग्रह निर्धारित करते हैं आपका व्यक्तित्व (भाग 2) पिछले लेख में आपने जाना कि भारतीय वैदिक ज्योतिष में मानव मस्तिष्क को 42 विभिन्न भागों में बांटा गया है। जो कि सोचने,सीखने,याद रखने,अनुभव करने,प्रतिक्रिया करने आदि अनेक मानसिक शक्तियों तथा प्रक्रियाओं के अलग-अलग केन्द्र हैं।अब जानते हैं कि किस प्रकार किसी मनुष्य की जन्मकुंडली के भिन्न भिन्न भावों में बैठे हुए ग्रह उस व्यक्ति के मस्तिष्क को नियंत्रित एवं संचालित करते हैं।जिसके कारण उस मनुष्य में विभिन्न मानसिक शक्तियों,गुण-दोषों,प्रवृ्तियों आदि का विकास होता है। 1. अगर कुण्डली के लग्न अर्थात प्रथम भाव में दशमेश अर्थात दसवें भाव का स्वामी विधमान हो तो वह मस्तिष्क के प्रथम(कामेच्छा), द्वितीय(विवाहेछा) तथा 37वें भाग(राग-विराग) को प्रभावित करता है, जिस कारण उस मनुष्य के मस्तिष्क में विवाह की तीव्र इच्छा जागृ्त होती है। दशमेश द्वारा प्रेरित प्रणय मध्यम श्रेणी का होता है। जिस कारण प्रणय पात्र से प्रेम एवं सहानुभूति की अपेक्षा उसमे कामुकता और स्वार्थलोलुपता की भावना ज्यादा रहती है। 2. यदि द्वितीय भाव में भाग्येश अर्थात नवम भाव का स्वामी हो तो मस्
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ज्योतिष के अनुसार अशुभ जन्म समय (Inauspicious birth time as per astrology) हम जैसा कर्म करते हैं उसी के अनुरूप हमें ईश्वर सुख दु:ख देता है। सुख दु:ख का निर्घारण ईश्वर कुण्डली में ग्रहों स्थिति के आधार पर करता है। जिस व्यक्ति का जन्म शुभ समय में होता है उसे जीवन में अच्छे फल मिलते हैं और जिनका अशुभ समय में उसे कटु फल मिलते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह शुभ समय क्या है और अशुभ समय किसे कहते हैं आइये जानें। अमावस्या में जन्म: (Birth during a new moon day) ज्योतिष शास्त्र में अमावस्या को दर्श के नाम से भी जाना जाता है। इस तिथि में जन्म माता पिता की आर्थिक स्थिति पर बुरा प्रभाव डालता है। जो व्यक्ति अमावस्या तिथि में जन्म लेते हैं उन्हें जीवन में आर्थिक तंगी का सामना करना होता है। इन्हें यश और मान सम्मान पाने के लिए काफी प्रयास करना होता है। अमावस्या तिथि में भी जिस व्यक्ति का जन्म पूर्ण चन्द्र रहित अमावस्या में होता है वह अधिक अशुभ माना जाता है। इस अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए घी का छाया पात्र दान करना चाहिए, रूद्राभिषेक और सूर्य एवं चन्द्र की शांति कराने से भी इस तिथि में जन्म के अशुभ
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कोई अंकशास्त्र की सत्यता को परखना चाहता है तो उसे थोड़ी गहराई से अंक 4 (जन्म तिथि 4,13,22,31) तथा अंक 8 (जन्म तिथि 8,17,26) वाले लोगों के जीवन का अध्ययन करना पड़ेगा। वैसे तो सभी मनुष्यों के जीवन पर उनकी जन्म तिथि या जन्मतिथि से संबंधित अंकों का प्रभाव हमेशा होता है परंतु अंक 4 और 8 वाले इस मामले में कुछ अधिक ही प्रभावित होते हैं। हालांकि अंकशास्त्र में इन अंकों को अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता, इन अंकों से प्रभावित व्यक्तियों को भी अंकशास्त्री हमेशा इनसे बचने की सलाह देते हैं परंतु जमीन से आसमान की बुलंदियों पर पहुंचाने की शक्ति भी इन अंकों में ही होती है और यही विरोधाभास इन अंकों कों अंकशास्त्रियों के शोध पत्रों में अधिक जगह दिलाता है। आप किसी का नाम अंक जोिड़ये यदि उसका अंक 4 या 8 आये तो उसकी जन्मतिथि पूछ लीजिये अक्सर वो इन्हीं अंकों से संबंधित होती है। एक उदाहरण देखिये : अमेरिका के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बराक ओवामा का जन्म 4 अगस्त 1961 को हुआ। जन्म तिथि 4 1961 को आपस में जोड़ने से 17 आता है और 17 को फिर आपस में जोड़ने पर अंक 8 आ जाता है। अगस्त माह का क्रमांक 8 है। इनका प्रचलित नाम अं
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प्रेम और ज्योतिष प्रेम एक पवित्र भाव है। मानव मात्र प्रेम के सहारे जीता है और सदैव प्रेम के लिए लालयित रहता है। प्रेम का अर्थ केवल पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका के प्रेम से नहीं लिया जाना चाहिए। मनुष्य जिस समाज में रहता है, उसके हर रिश्ते से उसे कितना स्नेह- प्रेम मिलेगा, यह बात कुंडली भली-भाँति बता सकती है। कुंडली का पंचम भाव प्रेम का प्रतिनिधि भाव कहलाता है। इसकी सबल स्थिति प्रेम की प्रचुरता को बताती है। इस भाव का स्वामी ग्रह यदि प्रबल हो तो जिस भाव में स्थित होता है, उसका प्रेम जातक को अवश्य मिलता है। * पंचमेश लग्नस्थ होने पर जातक को पूर्ण देह सुख व बुद्धि प्राप्त होती है। * पंचमेश द्वितीयस्थ होने पर धन व परिवार का प्रेम मिलता है। * तृतीयस्थ पंचमेश छोटे भाई-बहनों से प्रेम दिलाता है। * पंचमेश चतुर्थ में हो तो माता का, जनता का प्रेम मिलता है। * पंचमेश पंचम में हो तो पुत्रों से प्रेम मिलता है। * पंचमेश सप्तम में हो तो जीवनसाथी से अत्यंत प्रेम रहता है। * पंचमेश नवम में हो तो भाग्य साथ देता है, ईश्वरीय कृपा मिलती है। पिता से प्रेम मिलता है। * पंचमेश दशमस्थ होकर गुरुजनों, अधिकारियों का
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कैसा होगा आपका जीवनसाथी युवावस्था में आते ही भावी पति या पत्नी के बारे में जानने की इच्छा प्रबल होती जाती है। कुंडली का सप्तम भाव भावी पति या पत्नी के बारे में स्पष्ट सूचना देता है। 1. सप्तम स्थान में जो राशि होती है, उसके स्वभावनुसार भावी जीवनसाथी का व्यक्तित्व होता है। यदि अग्नि तत्व की राशि हो (मेष, सिंह, धनु) तो साहसी, निर्भीक, गुस्से वाला साथी मिलता है। जल तत्व की राशि हो (कर्क, वृश्चिक, मीन) तो भावुक, कोमल स्वभाव का साथी होता है। पृथ्वी तत्व की राशि हो (वृष, कन्या, मकर) तो कार्यकुशल मगर अंतर्मुखी होते हैं। वायु तत्व की राशि हो (मिथुन, तुला, कुंभ) तो व्यवहार कुशल, वाचाल, सामाजिक होते हैं। 2. सप्तम भाव में जो ग्रह हो, उसके अनुसार भी भावी साथी के स्वभाव का अंदाज लगाया जा सकता है। सूर्य : अहंकारी, आत्मविश्वासी, ऊँचे खानदान वाला, हुकुमत व अधिकार जताने वाला। मंगल : महत्वाकांक्षी, गुस्सैल, उत्साही, खर्चीला, खाने-पीने का शौकीन। बुध : व्यवहार कुशल, बातूनी, बुद्धिमान, पढ़ाकू गुरु : सुशिक्षित, धार्मिक, नम्र, समझदार शुक्र : कलाप्रिय, अच्छी अभिरुचि वाला, रूपवान, गृहस्थी में रस लेने वाल
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आपका नन्हा शिशु और ज्योतिष संसार की सबसे महत्वपूर्ण घटना जो हमारे जीवन में धटती हैं, वह है हमारे परिवार में बालक का जन्म। हिन्दू संस्कृति में विशेषकर संतान वह भी पुत्र संतान का जन्म विशेष महत्व का माना जाता है। यह कहा जाता है कि पितृ ऋण से मुक्ति प्राप्त करने के लिये पुत्र संतान का जन्म होना ही चाहिये। आज मान्यतायें तेजी से बदल रही हैं। आज बहुत से परिवार हैं जो लड़के और लड़की के जन्म में कोई भेद नहीं मानते हैं। उनका मानना है कि संतान का योग्य होना, स्वस्थ रहना ज्यादा महत्वपूर्ण है। आज यह वास्तविकता है कि लड़कियां किसी भी क्षेत्र में अपनी योग्यता साबित करने में लड़कों से पीछे नहीं हैं। संतान के चरण का निर्धारण संतान के जन्म के समय पूछे जाने वाले प्रश्न साधारणतया निम्नलिखित होते हैं - कि उसके चरण कौन से हैं - चांदी, तांबा, स्वर्ण या फिर लौह के। इसके ग्रह माता-पिता, दादी-दादा या नाना-नानी के लिये कैसे हैं, ये मंगली है या नहीं। इसकी आयु कितनी है। विद्या-बुद्धि कैसी रहेगी या स्वास्थ्य ठीक रहेगा या नहीं। मूलों का जन्म है या नहीं। बालक के चरण कैसे
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संसार में ज्योतिष की कई शाखाऎं हैं, जिनमें से अंक ज्योतिष भी एक है. सामान्यतय ज्योतिष में ग्रहो का प्रभाव कार्य करता है. प्रत्येक ग्रह किसी न किसी नम्बर से जुडा हुआ है या हुम इस प्रकार भी कह सकते हैं कि कोइ एक नम्बर किसी ग्रह विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, जैसे कि 1 नम्बर सूर्य 2 नम्बर चन्द्र तथा 9 नम्बर मंगल या इत्यादि. नम्बर 1 से 9 तक ही लिए जाते हैं. 0 को इसमें सम्मिलित नही किया गया है. ग्रह भी 9 ही होते हैं, अतः प्रत्येक ग्रह का एक विशेष अंक है. पाश्चात्य अंक ज्योतिष सात ग्रहो के अलावा नैपच्यून व यूरेनस को क्रमशः आठवाँ व नौवा ग्रह मानता है. जबकि भारतीय अंक ज्योतिष राहु-केतु को आठवें एंव नवें ग्रह के रुप में लेता है. भारतीय एंव पाश्चात्य अंक ज्योतिष के फलादेश कथन में थोडा सा अन्तर रहता है. अब हम अंक ज्योतिष विज्ञान के कार्य करने के तरीके की विवेचना करेंगे. वैसे तो अंक ज्योतिष में बहुत सारी परिभाषाएँ सामने आती हैं, परन्तु हम इसमें मुख्य रुप से दो परिभाषाओ मूलांक तथा भाग्यांक की ही चर्चा करेंगे. किसी भी व्यक्ति की जन्म तारीख उसका मूल्यांक होता है. जैसे कि 2 जुलाई को जन्मे
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ज्योतिष: अद्वैत का विज्ञान भगवान श्री के चरणों में निवेदन करूंगा कि हम एक नये विषय पर भगवान श्री से मार्ग-दर्शन चाहेंगे और वह विषय है ज्योतिष। यह अछूता विषय है, भगवान श्री के श्रीमुख से इस पर कभी चर्चा नहीं हुई है। तो भगवान श्री के श्रीचरणों में पुनः निवेदन करूंगा कि आज ज्योतिष के संबंध में हमारा मार्ग-दर्शन करें। जोतिष शायद सबसे पुराना विषय है और एक अर्थ में सबसे ज्यादा तिरस्कृत विषय भी है। सबसे पुराना इसलिए कि मनुष्य-जाति के इतिहास की जितनी खोजबीन हो सकी है उसमें ज्योतिष, ऐसा कोई भी समय नहीं था, जब मौजूद न रहा हो। जीसस से पच्चीस हजार वर्ष पूर्व सुमेर में मिले हुए हड्डी के अवशेषों पर ज्योतिष के चिह्न अंकित हैं। पश्चिम में पुरानी से पुरानी जो खोजबीन हुई है, वह जीसस से पच्चीस हजार वर्ष पूर्व इन हड्डियों की है, जिन पर ज्योतिष के चिह्न और चंद्र की यात्रा के चिह्न अंकित हैं। लेकिन भारत में तो बात और भी पुरानी है। ऋग्वेद में, पंचानबे हजार वर्ष पूर्व ग्रह-नक्षत्रों की जैसी स्थिति थी, उसका उल्लेख है। इसी आधार पर लोकमान्य तिलक ने यह तय किया था कि ज्योतिष नब्बे हजार वर्ष से ज्यादा प