Posts

Showing posts from May, 2009

राहु बनाता है चतुर राजनेता

राहु बनाता है चतुर राजनेता राजनीति एक ऐसा क्षेत्र बनता जा रहा है, जहाँ कम परिश्रम में भरपूर पैसा व प्रसिद्ध‍ि दोनों ही प्राप्त होते हैं। ढेरों सुख-सुविधाएँ अलग से मिलती ही है। और मजा ये कि इसमें प्रवेश के लिए किसी विशेष शैक्षणिक योग्यता की भी जरूरत नहीं होती। राजनीति में जाने के लिए भी कुंडली में कुछ विशेष ग्रहों का प्रबल होना जरूरी है। राहु को राजनीति का ग्रह माना जाता है। यदि इसका दशम भाव से संबंध हो या यह स्वयं दशम में हो तो व्यक्ति धूर्त राजनीति करता है। अनेक तिकड़मों और विवादों में फँसकर भी अपना वर्चस्व कायम रखता है। राहु यदि उच्च का होकर लग्न से संबंध रखता हो तब भी व्यक्ति चालाक होता है। राजनीति के लिए दूसरा ग्रह है गुरु- गुरु यदि उच्च का होकर दशम से संबंध करें, या दशम को देखें तो व्यक्ति बुद्धि के बल पर अपना स्थान बनाता है। ये व्यक्ति जन साधारण के मन में अपना स्थान बनाते हैं। चालाकी की नहीं वरन् तर्कशील, सत्य प्रधान राजनीति करते हैं। बुध के प्रबल होने पर दशम से संबंध रखने पर व्यक्ति अच्छा वक्ता होता है। बुध गुरु दोनों प्रबल होने पर वाणी में ओज व विद्वत्ता का समन्वय होता है। ऐसे

क्या बताते हैं कुंडली के 12 भाव

क्या बताते हैं कुंडली के 12 भाव ज्योतिष में मान्य बारह राशियों के आधार पर जन्मकुंडली में बारह भावों की रचना की गई है। प्रत्येक भाव में मनुष्य जीवन की विविध अव्यवस्थाओं, विविध घटनाओं को दर्शाता है। आइए इनके बारे में विस्तार से जानें। 1. प्रथम भाव : यह लग्न भी कहलाता है। इस स्थान से व्यक्ति की शरीर यष्टि, वात-पित्त-कफ प्रकृति, त्वचा का रंग, यश-अपयश, पूर्वज, सुख-दुख, आत्मविश्वास, अहंकार, मानसिकता आदि को जाना जाता है। 2. द्वितीय भाव : इसे धन भाव भी कहते हैं। इससे व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, परिवार का सुख, घर की स्थिति, दाईं आँख, वाणी, जीभ, खाना-पीना, प्रारंभिक शिक्षा, संपत्ति आदि के बारे में जाना जाता है। 3. तृतीय भाव : इसे पराक्रम का सहज भाव भी कहते हैं। इससे जातक के बल, छोटे भाई-बहन, नौकर-चाकर, पराक्रम, धैर्य, कंठ-फेफड़े, श्रवण स्थान, कंधे-हाथ आदि का विचार किया जाता है। 4. चतुर्थ स्थान : इसे मातृ स्थान भी कहते हैं। इससे मातृसुख, गृह सौख्‍य, वाहन सौख्‍य, बाग-बगीचा, जमीन-जायदाद, मित्र छाती पेट के रोग, मानसिक स्थिति आदि का विचार किया जाता है। 5. पंचम भाव : इसे सुत भाव भी कहते हैं। इससे स

होटल व्यवसाय में सफलता के योग

होटल व्यवसाय में सफलता के योग अत्याधुनिक सुसज्जित फाइव स्टार होटल का जिक्र होते ही हमारे जेहन में एक ऐसी जगह की तस्वीर उभरती है जहाँ खाने-पीने से लेकर हर प्रकार की सुविधा एवं ठहरने की उत्तम व्यवस्था होती है। यहाँ ठहरने वालों को उचित आराम और सुविधाएँ मिलें इसके लिए छोटी से छोटी बात का ध्यान रखा जाता है। इसीलिए उच्च होटल व्यवसाय में बहुत अधिक धन की आवश्यकता होती है और यदि इतना धन लगाकर भी सफलता न मिले तो सब किया कराया बेकार हो जाता है। तो आइए जानते हैं कि इस क्षेत्र में सफलता के योग किस प्रकार कुंडली में बैठे ग्रहों से सुनिश्चित होते हैं। यह व्यवसाय शुक्र, बुध, मंगल से प्रेरित है। व्यवसाय भाव दशम, लग्न, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ भाव व एकादश भाव विशेष महत्व रखते हैं। दशम भाव उच्च व्यवसाय का भाव है तो दशम से सप्तम जनता से संबंधित भाव हैं। व्यापार जनता से संबंधित है अतः इनका संबंध होना भी परम आवश्यक है। द्वितीय भाव वाणी का है। यदि व्यापारी की वाणी ठीक नहीं होगी तो व्यापार चौपट हो जाएगा। लग्न स्वयं की स्थिति को दर्शाता है व एकादश भाव आय का है तो तृतीय भाव पराक्रम का है। इन सबका इस व्यवसाय में व

शल्य चिकित्सक बनने का योग

शल्य चिकित्सक बनने का योग एकादश भाव आय का, पंचम भाव संतान, विद्या, मनोरंजन का भाव है। इस एकादश भाव से पंचम भाव पर सूर्य, चंद्र, शुक्र की सप्तम पूर्ण दृष्टि पड़ती है। वहीं मंगल की दशम भाव से अष्टम एकादश भाव से सप्तम व धन, कुटुंब भाव से चतुर्थ दृष्टि पूर्ण पती है। गुरु धर्म, भाग्य भाव नवम से पंचम भाव पर नवम दृष्टि डालता है तो एकादश भाव से सप्तम लग्न से पंचम दृष्टि पूर्ण पती है। शनि की तृतीय दृष्टि तृतीय भाई, पराक्रम भाव से एकादाश भाव से सप्तम व अष्टम भाव से दशम पूर्ण दृष्टि पड़ती है। यहाँ पर हमारे अनुभव अनुसार राहु-केतु जो छाया ग्रह हैं, उनके बारे में विशेष फल नहीं मिलता न ही इनकी दृष्टि को माना जाता है न ही किसी एकादश भाव पर रहने से पंचम भाव पर कोई असर आता है। सर्वप्रथम सूर्य को लें यहाँ से यदि पंचम भाव पर सिंह राशि अपनी स्वदृष्टि से देखता है तो भले ही आय में कमी हो, लेकिन विद्या व संतान उत्तम होती है, संतान के बहोने पर लाभ मिलता है। एकादश भाव में कोई ग्रह हो, नीच को छोसभी शुभफल प्राप्त होते हैं। सूर्य की तुला राशि पर दृष्टि संतान व विद्या में कष्टकारी होती है। अतः ऐसे जातकों को सूर्य क

विदेश यात्रा के योग

विदेश यात्रा के योग विदेश में कितने समय के लिए वास्तव्य होगा, यह जानने के लिए व्यय स्थान स्थित राशि का विचार करना आवश्यक होता है। व्यय स्थान में यदि चर राशि हो तो विदेश में थोड़े समय का ही प्रवास होता है। विदेश यात्रा के योग के लिए चतुर्थ स्थान का व्यय स्थान जो तृतीय स्थान होता है, उस पर गौर करना पड़ता है। इसके साथ-साथ लंबे प्रवास के लिए नवम स्थान तथा नवमेश का भी विचार करना होता है। परदेस जाना यानी नए माहौल में जाना। इसलिए उसके व्यय स्थान का विचार करना भी आवश्यक होता है। जन्मांग का व्यय स्थान विश्व प्रवास की ओर भी संकेत करता है। विदेश यात्रा का योग है या नहीं, इसके लिए तृतीय स्थान, नवम स्थान और व्यय स्थान के कार्येश ग्रहों को जानना आवश्यक होता है। ये कार्येश ग्रह यदि एक दूजे के लिए अनुकूल हों, उनमें युति, प्रतियुति या नवदृष्टि योग हो तो विदेश यात्रा का योग होता है। अर्थात उन कार्येश ग्रहों की महादशा, अंतरदशा या विदशा चल रही हो तो जातक का प्रत्यक्ष प्रवास संभव होता है। अन्यथा नहीं। इसके साथ-साथ लंबे प्रवास के लिए नवम स्थान तथा नवमेश का भी विचार करना होता है। परदेस जाना यानी नए माहौल में

भोजन संबंधी आदतें और ज्योतिष

भोजन संबंधी आदतें और ज्योतिष ज्योतिष एक पूर्ण विकसित शास्त्र है जिसमें केवल एक कुंडली उपलब्ध होने पर उस मनुष्य के समस्त जीवन का खाका खींचा जा सकता है। यहाँ तक कि उसके खानपान संबंधी आदतें भी कुंडली से बताई जा सकती हैं। * धन स्थान से भोजन का ज्ञान होता है। यदि इस स्थान का स्वामी शुभ ग्रह हो और शुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति कम भोजन करने वाला होता है। * यदि धनेश पाप ग्रह हो, पाप ग्रहों से संबंध करता हो तो व्यक्ति अधिक खाने वाला (पेटू) होगा। यदि शुभ ग्रह पाप ग्रहों से दृष्ट हो या पाप ग्रह शुभ से (धनेश होकर) तो व्यक्ति औसत भोजन करेगा। * लग्न का बृहस्पति अतिभोजी बनाता है मगर यदि अग्नि तत्वीय ग्रह (मंगल, सूर्य बृहस्पति) निर्बल हों तो व्यक्ति की पाचन शक्ति गड़बड़ ही रहेगी। * धनेश शुभ ग्रह हो, उच्च या मूल त्रिकोण में हो या शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो व्यक्ति आराम से भोजन करता है। * धनेश मेष, कर्क, तुला या मकर राशि में हो या धन स्थान को शुभ ग्रह देखें तो व्यक्ति जल्दी खाने वाला होता है। * धन स्थान में पाप ग्रह हो, पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो व्यक्ति बहुत धीरे खाता है। खाने में पसंद आने वाली चीजों की

वेलेंटाइन डे : प्रेम और ज्योतिष

वेलेंटाइन डे : प्रेम और ज्योतिष प्रेम एक पवित्र भाव है। मानव मात्र प्रेम के सहारे जीता है और सदैव प्रेम के लिए लालयित रहता है। प्रेम का अर्थ केवल पति-पत्नी या प्रे‍मी-प्रेमिका के प्रेम से नहीं लिया जाना चाहिए। मनुष्य जिस समाज में रहता है, उसके हर रिश्ते से उसे कितना स्नेह- प्रेम मिलेगा, यह बात कुंडली भली-भाँति बता सकती है। कुंडली का पंचम भाव प्रेम का प्रतिनिधि भाव कहलाता है। इसकी सबल स्थिति प्रेम की प्रचुरता को बताती है। इस भाव का स्वामी ग्रह यदि प्रबल हो तो जिस भाव में स्थित होता है, उसका प्रेम जातक को अवश्य मिलता है। * पंचमेश लग्नस्थ होने पर जातक को पूर्ण देह सुख व बुद्धि प्राप्त होती है। * पंचमेश द्वितीयस्थ होने पर धन व परिवार का प्रेम मिलता है। * तृतीयस्थ पंचमेश छोटे भाई-बहनों से प्रेम दिलाता है। * पंचमेश चतुर्थ में हो तो माता का, जनता का प्रेम मिलता है। * पंचमेश पंचम में हो तो पुत्रों से प्रेम मिलता है। * पंचमेश सप्तम में हो तो जीवनसाथ‍ी से अत्यंत प्रेम रहता है। * पंचमेश नवम में हो तो भाग्य साथ देता है, ईश्‍वरीय कृपा मिलती है। पिता से प्रेम मिलता है। * पंचमेश दशमस्थ होकर गुरुजनों,

ग्रहों के अनुरूप चुनें विषय

चौथे व पाँचवें भाव से जानें विषय दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करते ही 'कौन-सा विषय चुनें' यह यक्ष प्रश्न बच्चों के सामने आ खड़ा होता है। माता-पिता को अपनी महत्वाकांक्षाओं को परे रखकर एक नजर कुंडली पर भी मार लेनी चाहिए। बच्चे किस विषय में सिद्धहस्त होंगे, यह ग्रह स्थिति स्पष्ट बताती है। * विषय के चुनाव हेतु कुंडली के चौथे व पाँचवें भाव का प्रमुख रूप से अध्ययन करना चाहिए। साथ ही लग्न यानी व्यक्ति के स्वभाव का ‍भी विवेचन कर लेना चाहिए। ग्रहानुसार विषय : * यदि चौथे व पाँचवें भाव पर हो। 1सूर्य का प्रभाव - आर्ट्‍स, विज्ञान 2 मंगल का प्रभाव - जीव विज्ञान 3. चंद्रमा का प्रभाव - ट्रेवलिंग, टूरिज्म, 4. बृहस्पति का प्रभाव - किसी विषय में अध्यापन की डिग्री 5 बुध का प्रभाव - कॉमर्स, कम्प्यूटर 6 शुक्र का प्रभाव- मीडिया, मास कम्युनिकेशन, गायन, वादन 7 शनि का प्रभाव- तकनीकी क्षेत्र, गणित इन मुख्‍य ग्रहों के अलावा ग्रहों की युति-प्रतियुति का भी अध्ययन करें, तभी किसी निष्कर्ष पर पहुँचें। (जैसे शुक्र और बुध हो तो होम्योपैथी या आयुर्वेद पढ़ाएँ) ताकि चुना गया विषय बच्चे को आगे सफलता दिला सके।

प्रेम विवाह के कुछ मुख्य योग

प्रेम विवाह के कुछ मुख्य योग 1. लग्नेश का पंचक से संबंध हो और जन्मपत्रिका में पंचमेश-सप्तमेश का किसी भी रूप में संबंध हो। शुक्र, मंगल की युति, शुम्र की राशि में स्थिति और लग्न त्रिकोण का संबंध प्रेम संबंधों का सूचक है। पंचम या सप्तक भाव में शुक्र सप्तमेश या पंचमेश के साथ हो। 2. किसी की जन्मपत्रिका में लग्न, पंचम, सप्तम भाव व इनके स्वामियों और शुक्र तथा चन्द्रमा जातक के वैवाहिक जीवन व प्रेम संबंधों को समान रूप से प्रभावित करते हैं। लग्र या लग्नेश का सप्तम और सप्तमेश का पंचम भाव व पंचमेश से किसी भी रूप में संबंध प्रेम संबंध की सूचना देता है। यह संबंध सफल होगा अथवा नही, इसकी सूचना ग्रह योगों की शुभ-अशुभ स्थिति देती है। 3. यदि सप्तकेश लग्नेश से कमजोर हो अथवा यदि सप्तमेश अस्त हो अथवा मित्र राशि में हो या नवांश में नीच राशि हो तो जातक का विवाह अपने से निम्र कुल में होता है। इसके विपरीत लग्नेश से सप्तवेश बाली हो, शुभ नवांश में ही तो जीवनसाथी उच्च कुल का होता है। 4. पंचमेश सप्तम भाव में हो अथवा लग्नेश और पंचमेश सप्तम भाव के स्वामी के साथ लग्न में स्थित हो। सप्तमेश पंचम भाव में हो और लग्न स

प्रेम विवाह असफल रहने के कारण

प्रेम विवाह असफल रहने के कारण वर्तमान में आधुनिक परिवेश, खुला वातावरण, टीवी संस्कृति, वेलेन्टाइन डे जैसे अवसर के कारण हमारी युवा पीढ़ी अपने लक्ष्यों से भटक रही है। प्यार-मोहब्बत करें लेकिन सोच-समझकर। अवसाद, आत्महत्या या बदनामी से बचने हेतु प्रेम विवाह करने और दिल लगाने से पूर्व अपने साथी से अपने गुण-विचार ठीक प्रकार से मिला लें ताकि भविष्य में पछताना न पड़े। ग्रहों के कारण व्यक्ति प्रेम करता है और इन्हीं ग्रहों के प्रभाव से दिल भी टूटते हैं। ज्योतिष शास्त्रों में प्रेम विवाह के योगों के बारे में स्पष्ट वर्णन नहीं मिलता है, परन्तु प्रेम विवाह असफल रहने के कई कारण होते है :- 1. शुक्र व मंगल की स्थिति व प्रभाव प्रेम संबंधों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। यदि किसी जातक की कुण्डली में सभी अनुकूल स्थितियाँ होते हुई भी, शुक्र की स्थिति प्रतिकूल हो तो प्रेम संबंध टूटकर दिल टूटने की घटना होती है। 2. सप्तम भाव या सप्तमेश का पाप पीड़ित होना, पापयोग में होना प्रेम विवाह की सफलता पर प्रश्नचिह्न लगाता है। पंचमेश व सप्तमेश दोनों की स्थिति इस प्रकार हो कि उनका सप्तम-पंचम से कोई संबंध न हो तो प