मेष,वृ्ष,मिथुन,कर्क,सिंह तथा कन्या राशीयों का स्वभावगत जीवन फल

चंद्रमा के प्रभाव अनुसार ही किसी भी व्यक्ति की आदतें और रूचियां निर्धारित होती हैं।
भारतीय ज्योतिष में चंद्रमा और सूर्य का विशेष महत्व है। क्योंकि इन्हीं के आधार पर काल गणना, सोलह संस्कार, मुहूर्त, तिथि, करण, योग, वार और नक्षत्रों की गणना की जाती है। इनमें भी चंद्रमा को विशेष महत्व प्राप्त है। इसका मुख्य कारण चंद्रमा की गतिशीलता है।यह सवा दो दिन में अपनी राशि परिवर्तित कर लेता है। इन सवा दो दिनों में विश्व में कहीं भी किसी प्राणी का जन्म हो ज्योतिष पद्धति अनुसार वही उसकी राशि होगी, जबकि पाश्चात्य ज्योतिष में सूर्य की राशि से अध्ययन किया जाता है।
राशि निर्धारण की भारतीय पद्धति अधिक सूक्ष्म और वैज्ञानिक है। चूंकि चंद्रमा पृथ्वी का निकटस्थ उपग्रह है। यह मन की कल्पनाओं की भांति गतिशील है। इसीलिए वेदों में इसे "चंद्रमा मनसो जात:" कहा है। चंद्रमा की द्वादश राशि अनुसार आपकी आदतें और रूचि कैसी होती हैं,आईए जानते हैं-मेष,वृ्ष,मिथुन,कर्क,सिंह,कन्या राशीयों के बारे में
मेष राशि : चंद्रमा की इस राशि पर स्थिति से व्यक्ति का ताम्र वर्ण ,गोल नेत्र एवं घुटने कमजोर होंगे। वह अत्यंत चंचल, अस्थिर बुद्धि का, कामुक, थोडा खाने वाला, जन्दी ही प्रसन्न होने वाला, मान-सम्मान चाहने वाला, पानी से डरने वाला, परिवर्तनशील, कल्पना प्रधान, निडर और शाकाहारी अथवा अधिक शाक-सब्जी खाने का शौकीन होगा।सामान्यत:ऎसे व्यक्ति बिना हानि-लाभ का विचार किए दूसरों का अनुसरण अति शीघ्र कर लेते हैं। प्रधानत: इस राशि को अपने जीवन के प्रारंभिक वर्षों में काफी संघर्षशील जीवन व्यतीत करना पडता है, परंतु अपने परिश्रम एवं कार्यनिष्ठा तथा धैर्य से वह लक्ष्य को प्राप्त कर ही लेता है।मुंह,पैर या बगल के नीचे तिल का होना भाग्यशाली होने का सूचक होगा। अक्सर देखने में आता है कि पुरूषों की अपेक्षा महिलाएं इनके व्यक्तित्व से अधिक प्रभावित होती हैं। इनके जीवन में 7,13,21,30,38,46,52,55,59,63 एवं 67वें वर्ष की आयु में कोई न कोई अतिविशेष एवं महत्वपूर्ण घटना का संयोग अवश्य निर्मित होता है।
शीघ्र सफलता प्राप्ति हेतु ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीनारायणाय नम: मंत्र का नित्य जाप करें।
वृष राशि: चंद्रमा की इस राशि पर स्थिति व्यक्ति को व्यवहारकुशल एवं सहनशील बनाती है। स्वभावत: मन्द गति से चलने वाले,चेहरा और जांघे कुछ बडी होती है। इस राशि का प्रधान उद्देश्य प्राय: सांसारिक सुखों की प्राप्ति तथा भोग साधन जुटाने का प्रबल रूप से होता है। ये निकट संबंधियों एवं मित्रों द्वारा सहयोग प्राप्ति से उन्नतिशील होते हैं। ये अच्छे कलाकार होते हैं। भावुकता एवं महत्वाकांक्षा इस राशि का प्रधान गुण है। इसकी पूर्ति के लिए ये बडी लगन तथा परिश्रम करते हैं। ये भाग्य से अधिक कर्म पर विश्वास करते हैं।लापरवाही एवं आलस इनके भाग्योदय में सबसे बडी बाधा सिद्ध होती है। सुख के समय सारी बातें भूल जाना और दुख: समय किंकर्तव्यविमूढ होकर पुरानी रामकहानी लेकर बैठ जाना,ये इनके स्वभाव का सबसे बढा दोष रहता है। 4,14,30,32वां वर्ष कष्टकारी तथा 19,23,27,33,36,40,44,49,52,61वां वर्ष विशेष लाभकारी एवं महत्वपूर्ण रहेगा।
उन्नति हेतु ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्वित:,भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते !!मंत्र का नित्यप्रति जाप करें।
मिथुन राशि: चंद्रमा इस राशि पर होने से व्यक्ति विद्या में अनुराग रखने वाला, चंचल, शांत, सुखी और भोगी होता है।शारिरिक अनुपात में ये लोग ना तो अधिक मोटे होते हैं ओर ना ही लम्बे। ये शिल्प, वाणिज्य, लेखन अथवा वाक्-शक्ति में निपुण होते हैं। कला, संस्कृति, खेल तथा फिल्म- टेलीविजन कलाकारों, स्वच्छ राजनीति के क्षेत्र एवं सांस्कृतिक अभियानों का प्रतिनिधित्व इस राशि के लोग करते हैं। इस राशि वाले युवावस्था में ही अपना सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर लेते हैं।ऎसे व्यक्ति भ्रमण में ज्यादा रूचि नहीं लेते। दूसरों के इरादों को समझ लेने का उत्तम गुण इनमे विधमान होता है। 12,18,25,31,32,39,43,48,51,57वां वर्ष लाभकारी तथा 44 से 47वें वर्ष विशेष कष्टकारी कहे जा सकते हैं। सफलता प्राप्ति हेतु ॐ क्लीं कृष्णाय नम: मंत्र का जाप करें।
कर्क राशि: चंद्रमा की इस राशि पर स्थिति होने पर जातक साधु स्वभाव के शीलवान,चलने में तेज,नाटकीय हाव-भाव,प्रेमवश अधिक खर्च करने की आदत वाले,शुद्धचित, काव्य-प्रकृति एवं भ्रमण प्रेमी, भवनों के स्वामी एवं घरेलू कार्यों में दक्ष होते हैं। ये कामांध एवं उन्मादी भी होते हैं। ये संशयी स्वभाव के, लेखन एवं ज्योतिष में रूचि रखने वाले, आदर्शवादी, अत्यधिक भावुक, सचेतन एवं निष्ठावान होते हैं। कुटुम्ब, घर, माता तथा राष्ट्र को प्रेम करने वाले भी होते हैं।अधिकतर ये लोग किसी स्त्री के माध्यम से ही जीवन मे सफलता प्राप्त करते हैं। ये समयानुसार एक क्षण में पिघल जाते हैं और एक पल में ही क्रोधी हो जाते हैं।ये लोग जल्दबाजी के कारण कभी-कभी स्वयम ही अपना कार्य बिगाड लेते हैं.इनके जीवन में 6,15,17,21 से 36,38,61वां वर्ष अति लाभकारी तथा 39 से 48 वर्ष मध्य विभिन्न कष्टदायक परिस्थितियों का सामना करना पडता है। भाग्योदय हेतु ॐ हिरण्यगर्भाय अव्यक्तरूपिणे नम: मंत्र का नित्य जाप करें।
सिंह राशि: चंद्रमा की इस राशि पर स्थिति से व्यक्ति बलिष्ठ तथा माता-पिता का भक्त होता है। ये स्वभाव से लज्जाशील, स्त्रियों से द्वेष करने वाले होते हैं। इनका क्रोध स्थाई होता है। इनकी बुद्धि स्थिर होती है। इनमें राज्य प्राप्ति की स्वाभाविक अभिलाषा होती है। ये वसुधा को कुटुम्ब की भावना से देखने वाले, विकसित मस्तिष्क के, योग्य प्रबंधक एवं कार्यकर्ता होते हैं। इस राशि में जन्मे अज्ञानी अथवा अनपढ जातक भी मानवीय संवेदनाओं को समझने में कुशल तथा स्वाभाविक क्षमता रखते हैं। इनमें बदले की भावना अधिक होती है तथा ये भाग्यवादी भी नहीं होते।अक्सर इनके जीवन में 5,7,17,22,32,36,45,53 वें वर्ष विशेष परिवर्तनकारी सिद्ध होते हैं।
इन लोगों को भाग्योदय एवं जीवनोत्थान हेतु ॐ क्लीं ब्रह्मणे जगदाधाराय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए।
कन्या राशि: कन्या राशि में चंद्रमा होने से व्यक्ति कोमल एवं सत्य व्यवहार का धनी, सुखी, कई कार्यों में दक्ष, धार्मिक, बुद्धिमान एवं भोगप्रिय होते है। ये दूसरे की संपति एवं मकान का उपयोग करते हैं। इन्हें अधिकांश समय अपने जन्म स्थान से दूर बिताना पडता है। प्रधानत: इस राशि के जातक हास्यप्रिय, गायन-वादन एवं क्रीडा कला के जानकार, बहुभाषी होते हैं। ये छोटी-मोटी बातों की सूक्ष्म विवेचना करने वाले, प्रसिद्ध आलोचक भी होते हैं। क्योंकि सदा असंतुष्ट रहना इस राशि की विशेषता होती है।इनके जीवन का एक कटु सत्य यह भी है कि ये लोग बेशक दूसरों का दिल भले ही जीत लें,किन्तु दूसरों का ह्र्दय पहचान पाने में सदैव असमर्थ ही रहते हैं।जीवन में 9 से 13, 20,21,31,38,48 वें वर्ष विशेष महत्वपूर्ण सिद्ध होते हैं।
इनके लिए सर्वसुखदायक ॐ नम: प्रीं पीताम्बराय नम: मंत्र का जाप करना श्रेष्ठ फलदायी है।

Comments

Popular posts from this blog

क्या बताते हैं कुंडली के 12 भाव