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Showing posts from 2009

मूलांक से जानें बच्चे का स्वभाव

बच्चे का मूल स्वभाव जानकर ही शिक्षा दें अंक ज्योतिष में मूलांक जन्म तारीख के अनुसार 1 से 9 माने जाते हैं। (इसकी चर्चा पिछले लेख में की जा चुकी है।) प्रत्येक अंक व्यक्ति का मूल स्वभाव दिखाता है। बच्चे का मूल स्वभाव जानकर ही माता-पिता उसे सही तालीम दे सकते हैं। आइए, जानें कैसा है आपके बच्चे का स्वभाव। मूलांक 1 (1, 10 19, 28) : ये बच्चे क्रोधी, जिद्‍दी व अहंकारी होते हैं। अच्छे प्रशासनिक अधिकारी बनते हैं। ये तर्क के बच्चे हैं अत: डाँट-डपट नहीं सहेंगे। इन्हें तर्क से नहीं, प्यार से समझाएँ। * मूलांक 2 (2, 11, 20, 29) : ये शांत, समझदार, भावुक व होशियार होते हैं। माता-पिता की सेवा करते हैं। जरा सा तेज बोलना इन्हें ठेस पहुँचाता है। इनसे शांति व समझदारी से बात करें। * मूलांक 3 (3, 12, 21,30 ) : ये समझदार, ज्ञानी व घमंडी होते हैं। अच्‍छे सलाहकार बनते हैं। इन्हें समझाने के लिए पर्याप्त कारण व ज्ञान होना जरूरी है। * मूलांक 4 (4, 13, 22) : बेपरवाह, खिलंदड़े व कारस्तानी होते हैं। रिस्क लेना इनका स्वभाव होता है। इन्हें अनुशासन में रखना जरूरी है। ये व्यसनाधीन हो सकते हैं। * मूलांक 5 (5, 14, 23) :

राहु बनाता है चतुर राजनेता

राहु बनाता है चतुर राजनेता राजनीति एक ऐसा क्षेत्र बनता जा रहा है, जहाँ कम परिश्रम में भरपूर पैसा व प्रसिद्ध‍ि दोनों ही प्राप्त होते हैं। ढेरों सुख-सुविधाएँ अलग से मिलती ही है। और मजा ये कि इसमें प्रवेश के लिए किसी विशेष शैक्षणिक योग्यता की भी जरूरत नहीं होती। राजनीति में जाने के लिए भी कुंडली में कुछ विशेष ग्रहों का प्रबल होना जरूरी है। राहु को राजनीति का ग्रह माना जाता है। यदि इसका दशम भाव से संबंध हो या यह स्वयं दशम में हो तो व्यक्ति धूर्त राजनीति करता है। अनेक तिकड़मों और विवादों में फँसकर भी अपना वर्चस्व कायम रखता है। राहु यदि उच्च का होकर लग्न से संबंध रखता हो तब भी व्यक्ति चालाक होता है। राजनीति के लिए दूसरा ग्रह है गुरु- गुरु यदि उच्च का होकर दशम से संबंध करें, या दशम को देखें तो व्यक्ति बुद्धि के बल पर अपना स्थान बनाता है। ये व्यक्ति जन साधारण के मन में अपना स्थान बनाते हैं। चालाकी की नहीं वरन् तर्कशील, सत्य प्रधान राजनीति करते हैं। बुध के प्रबल होने पर दशम से संबंध रखने पर व्यक्ति अच्छा वक्ता होता है। बुध गुरु दोनों प्रबल होने पर वाणी में ओज व विद्वत्ता का समन्वय होता है। ऐसे

क्या बताते हैं कुंडली के 12 भाव

क्या बताते हैं कुंडली के 12 भाव ज्योतिष में मान्य बारह राशियों के आधार पर जन्मकुंडली में बारह भावों की रचना की गई है। प्रत्येक भाव में मनुष्य जीवन की विविध अव्यवस्थाओं, विविध घटनाओं को दर्शाता है। आइए इनके बारे में विस्तार से जानें। 1. प्रथम भाव : यह लग्न भी कहलाता है। इस स्थान से व्यक्ति की शरीर यष्टि, वात-पित्त-कफ प्रकृति, त्वचा का रंग, यश-अपयश, पूर्वज, सुख-दुख, आत्मविश्वास, अहंकार, मानसिकता आदि को जाना जाता है। 2. द्वितीय भाव : इसे धन भाव भी कहते हैं। इससे व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, परिवार का सुख, घर की स्थिति, दाईं आँख, वाणी, जीभ, खाना-पीना, प्रारंभिक शिक्षा, संपत्ति आदि के बारे में जाना जाता है। 3. तृतीय भाव : इसे पराक्रम का सहज भाव भी कहते हैं। इससे जातक के बल, छोटे भाई-बहन, नौकर-चाकर, पराक्रम, धैर्य, कंठ-फेफड़े, श्रवण स्थान, कंधे-हाथ आदि का विचार किया जाता है। 4. चतुर्थ स्थान : इसे मातृ स्थान भी कहते हैं। इससे मातृसुख, गृह सौख्‍य, वाहन सौख्‍य, बाग-बगीचा, जमीन-जायदाद, मित्र छाती पेट के रोग, मानसिक स्थिति आदि का विचार किया जाता है। 5. पंचम भाव : इसे सुत भाव भी कहते हैं। इससे स

होटल व्यवसाय में सफलता के योग

होटल व्यवसाय में सफलता के योग अत्याधुनिक सुसज्जित फाइव स्टार होटल का जिक्र होते ही हमारे जेहन में एक ऐसी जगह की तस्वीर उभरती है जहाँ खाने-पीने से लेकर हर प्रकार की सुविधा एवं ठहरने की उत्तम व्यवस्था होती है। यहाँ ठहरने वालों को उचित आराम और सुविधाएँ मिलें इसके लिए छोटी से छोटी बात का ध्यान रखा जाता है। इसीलिए उच्च होटल व्यवसाय में बहुत अधिक धन की आवश्यकता होती है और यदि इतना धन लगाकर भी सफलता न मिले तो सब किया कराया बेकार हो जाता है। तो आइए जानते हैं कि इस क्षेत्र में सफलता के योग किस प्रकार कुंडली में बैठे ग्रहों से सुनिश्चित होते हैं। यह व्यवसाय शुक्र, बुध, मंगल से प्रेरित है। व्यवसाय भाव दशम, लग्न, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ भाव व एकादश भाव विशेष महत्व रखते हैं। दशम भाव उच्च व्यवसाय का भाव है तो दशम से सप्तम जनता से संबंधित भाव हैं। व्यापार जनता से संबंधित है अतः इनका संबंध होना भी परम आवश्यक है। द्वितीय भाव वाणी का है। यदि व्यापारी की वाणी ठीक नहीं होगी तो व्यापार चौपट हो जाएगा। लग्न स्वयं की स्थिति को दर्शाता है व एकादश भाव आय का है तो तृतीय भाव पराक्रम का है। इन सबका इस व्यवसाय में व

शल्य चिकित्सक बनने का योग

शल्य चिकित्सक बनने का योग एकादश भाव आय का, पंचम भाव संतान, विद्या, मनोरंजन का भाव है। इस एकादश भाव से पंचम भाव पर सूर्य, चंद्र, शुक्र की सप्तम पूर्ण दृष्टि पड़ती है। वहीं मंगल की दशम भाव से अष्टम एकादश भाव से सप्तम व धन, कुटुंब भाव से चतुर्थ दृष्टि पूर्ण पती है। गुरु धर्म, भाग्य भाव नवम से पंचम भाव पर नवम दृष्टि डालता है तो एकादश भाव से सप्तम लग्न से पंचम दृष्टि पूर्ण पती है। शनि की तृतीय दृष्टि तृतीय भाई, पराक्रम भाव से एकादाश भाव से सप्तम व अष्टम भाव से दशम पूर्ण दृष्टि पड़ती है। यहाँ पर हमारे अनुभव अनुसार राहु-केतु जो छाया ग्रह हैं, उनके बारे में विशेष फल नहीं मिलता न ही इनकी दृष्टि को माना जाता है न ही किसी एकादश भाव पर रहने से पंचम भाव पर कोई असर आता है। सर्वप्रथम सूर्य को लें यहाँ से यदि पंचम भाव पर सिंह राशि अपनी स्वदृष्टि से देखता है तो भले ही आय में कमी हो, लेकिन विद्या व संतान उत्तम होती है, संतान के बहोने पर लाभ मिलता है। एकादश भाव में कोई ग्रह हो, नीच को छोसभी शुभफल प्राप्त होते हैं। सूर्य की तुला राशि पर दृष्टि संतान व विद्या में कष्टकारी होती है। अतः ऐसे जातकों को सूर्य क

विदेश यात्रा के योग

विदेश यात्रा के योग विदेश में कितने समय के लिए वास्तव्य होगा, यह जानने के लिए व्यय स्थान स्थित राशि का विचार करना आवश्यक होता है। व्यय स्थान में यदि चर राशि हो तो विदेश में थोड़े समय का ही प्रवास होता है। विदेश यात्रा के योग के लिए चतुर्थ स्थान का व्यय स्थान जो तृतीय स्थान होता है, उस पर गौर करना पड़ता है। इसके साथ-साथ लंबे प्रवास के लिए नवम स्थान तथा नवमेश का भी विचार करना होता है। परदेस जाना यानी नए माहौल में जाना। इसलिए उसके व्यय स्थान का विचार करना भी आवश्यक होता है। जन्मांग का व्यय स्थान विश्व प्रवास की ओर भी संकेत करता है। विदेश यात्रा का योग है या नहीं, इसके लिए तृतीय स्थान, नवम स्थान और व्यय स्थान के कार्येश ग्रहों को जानना आवश्यक होता है। ये कार्येश ग्रह यदि एक दूजे के लिए अनुकूल हों, उनमें युति, प्रतियुति या नवदृष्टि योग हो तो विदेश यात्रा का योग होता है। अर्थात उन कार्येश ग्रहों की महादशा, अंतरदशा या विदशा चल रही हो तो जातक का प्रत्यक्ष प्रवास संभव होता है। अन्यथा नहीं। इसके साथ-साथ लंबे प्रवास के लिए नवम स्थान तथा नवमेश का भी विचार करना होता है। परदेस जाना यानी नए माहौल में

भोजन संबंधी आदतें और ज्योतिष

भोजन संबंधी आदतें और ज्योतिष ज्योतिष एक पूर्ण विकसित शास्त्र है जिसमें केवल एक कुंडली उपलब्ध होने पर उस मनुष्य के समस्त जीवन का खाका खींचा जा सकता है। यहाँ तक कि उसके खानपान संबंधी आदतें भी कुंडली से बताई जा सकती हैं। * धन स्थान से भोजन का ज्ञान होता है। यदि इस स्थान का स्वामी शुभ ग्रह हो और शुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति कम भोजन करने वाला होता है। * यदि धनेश पाप ग्रह हो, पाप ग्रहों से संबंध करता हो तो व्यक्ति अधिक खाने वाला (पेटू) होगा। यदि शुभ ग्रह पाप ग्रहों से दृष्ट हो या पाप ग्रह शुभ से (धनेश होकर) तो व्यक्ति औसत भोजन करेगा। * लग्न का बृहस्पति अतिभोजी बनाता है मगर यदि अग्नि तत्वीय ग्रह (मंगल, सूर्य बृहस्पति) निर्बल हों तो व्यक्ति की पाचन शक्ति गड़बड़ ही रहेगी। * धनेश शुभ ग्रह हो, उच्च या मूल त्रिकोण में हो या शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो व्यक्ति आराम से भोजन करता है। * धनेश मेष, कर्क, तुला या मकर राशि में हो या धन स्थान को शुभ ग्रह देखें तो व्यक्ति जल्दी खाने वाला होता है। * धन स्थान में पाप ग्रह हो, पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो व्यक्ति बहुत धीरे खाता है। खाने में पसंद आने वाली चीजों की

वेलेंटाइन डे : प्रेम और ज्योतिष

वेलेंटाइन डे : प्रेम और ज्योतिष प्रेम एक पवित्र भाव है। मानव मात्र प्रेम के सहारे जीता है और सदैव प्रेम के लिए लालयित रहता है। प्रेम का अर्थ केवल पति-पत्नी या प्रे‍मी-प्रेमिका के प्रेम से नहीं लिया जाना चाहिए। मनुष्य जिस समाज में रहता है, उसके हर रिश्ते से उसे कितना स्नेह- प्रेम मिलेगा, यह बात कुंडली भली-भाँति बता सकती है। कुंडली का पंचम भाव प्रेम का प्रतिनिधि भाव कहलाता है। इसकी सबल स्थिति प्रेम की प्रचुरता को बताती है। इस भाव का स्वामी ग्रह यदि प्रबल हो तो जिस भाव में स्थित होता है, उसका प्रेम जातक को अवश्य मिलता है। * पंचमेश लग्नस्थ होने पर जातक को पूर्ण देह सुख व बुद्धि प्राप्त होती है। * पंचमेश द्वितीयस्थ होने पर धन व परिवार का प्रेम मिलता है। * तृतीयस्थ पंचमेश छोटे भाई-बहनों से प्रेम दिलाता है। * पंचमेश चतुर्थ में हो तो माता का, जनता का प्रेम मिलता है। * पंचमेश पंचम में हो तो पुत्रों से प्रेम मिलता है। * पंचमेश सप्तम में हो तो जीवनसाथ‍ी से अत्यंत प्रेम रहता है। * पंचमेश नवम में हो तो भाग्य साथ देता है, ईश्‍वरीय कृपा मिलती है। पिता से प्रेम मिलता है। * पंचमेश दशमस्थ होकर गुरुजनों,

ग्रहों के अनुरूप चुनें विषय

चौथे व पाँचवें भाव से जानें विषय दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करते ही 'कौन-सा विषय चुनें' यह यक्ष प्रश्न बच्चों के सामने आ खड़ा होता है। माता-पिता को अपनी महत्वाकांक्षाओं को परे रखकर एक नजर कुंडली पर भी मार लेनी चाहिए। बच्चे किस विषय में सिद्धहस्त होंगे, यह ग्रह स्थिति स्पष्ट बताती है। * विषय के चुनाव हेतु कुंडली के चौथे व पाँचवें भाव का प्रमुख रूप से अध्ययन करना चाहिए। साथ ही लग्न यानी व्यक्ति के स्वभाव का ‍भी विवेचन कर लेना चाहिए। ग्रहानुसार विषय : * यदि चौथे व पाँचवें भाव पर हो। 1सूर्य का प्रभाव - आर्ट्‍स, विज्ञान 2 मंगल का प्रभाव - जीव विज्ञान 3. चंद्रमा का प्रभाव - ट्रेवलिंग, टूरिज्म, 4. बृहस्पति का प्रभाव - किसी विषय में अध्यापन की डिग्री 5 बुध का प्रभाव - कॉमर्स, कम्प्यूटर 6 शुक्र का प्रभाव- मीडिया, मास कम्युनिकेशन, गायन, वादन 7 शनि का प्रभाव- तकनीकी क्षेत्र, गणित इन मुख्‍य ग्रहों के अलावा ग्रहों की युति-प्रतियुति का भी अध्ययन करें, तभी किसी निष्कर्ष पर पहुँचें। (जैसे शुक्र और बुध हो तो होम्योपैथी या आयुर्वेद पढ़ाएँ) ताकि चुना गया विषय बच्चे को आगे सफलता दिला सके।

प्रेम विवाह के कुछ मुख्य योग

प्रेम विवाह के कुछ मुख्य योग 1. लग्नेश का पंचक से संबंध हो और जन्मपत्रिका में पंचमेश-सप्तमेश का किसी भी रूप में संबंध हो। शुक्र, मंगल की युति, शुम्र की राशि में स्थिति और लग्न त्रिकोण का संबंध प्रेम संबंधों का सूचक है। पंचम या सप्तक भाव में शुक्र सप्तमेश या पंचमेश के साथ हो। 2. किसी की जन्मपत्रिका में लग्न, पंचम, सप्तम भाव व इनके स्वामियों और शुक्र तथा चन्द्रमा जातक के वैवाहिक जीवन व प्रेम संबंधों को समान रूप से प्रभावित करते हैं। लग्र या लग्नेश का सप्तम और सप्तमेश का पंचम भाव व पंचमेश से किसी भी रूप में संबंध प्रेम संबंध की सूचना देता है। यह संबंध सफल होगा अथवा नही, इसकी सूचना ग्रह योगों की शुभ-अशुभ स्थिति देती है। 3. यदि सप्तकेश लग्नेश से कमजोर हो अथवा यदि सप्तमेश अस्त हो अथवा मित्र राशि में हो या नवांश में नीच राशि हो तो जातक का विवाह अपने से निम्र कुल में होता है। इसके विपरीत लग्नेश से सप्तवेश बाली हो, शुभ नवांश में ही तो जीवनसाथी उच्च कुल का होता है। 4. पंचमेश सप्तम भाव में हो अथवा लग्नेश और पंचमेश सप्तम भाव के स्वामी के साथ लग्न में स्थित हो। सप्तमेश पंचम भाव में हो और लग्न स

प्रेम विवाह असफल रहने के कारण

प्रेम विवाह असफल रहने के कारण वर्तमान में आधुनिक परिवेश, खुला वातावरण, टीवी संस्कृति, वेलेन्टाइन डे जैसे अवसर के कारण हमारी युवा पीढ़ी अपने लक्ष्यों से भटक रही है। प्यार-मोहब्बत करें लेकिन सोच-समझकर। अवसाद, आत्महत्या या बदनामी से बचने हेतु प्रेम विवाह करने और दिल लगाने से पूर्व अपने साथी से अपने गुण-विचार ठीक प्रकार से मिला लें ताकि भविष्य में पछताना न पड़े। ग्रहों के कारण व्यक्ति प्रेम करता है और इन्हीं ग्रहों के प्रभाव से दिल भी टूटते हैं। ज्योतिष शास्त्रों में प्रेम विवाह के योगों के बारे में स्पष्ट वर्णन नहीं मिलता है, परन्तु प्रेम विवाह असफल रहने के कई कारण होते है :- 1. शुक्र व मंगल की स्थिति व प्रभाव प्रेम संबंधों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। यदि किसी जातक की कुण्डली में सभी अनुकूल स्थितियाँ होते हुई भी, शुक्र की स्थिति प्रतिकूल हो तो प्रेम संबंध टूटकर दिल टूटने की घटना होती है। 2. सप्तम भाव या सप्तमेश का पाप पीड़ित होना, पापयोग में होना प्रेम विवाह की सफलता पर प्रश्नचिह्न लगाता है। पंचमेश व सप्तमेश दोनों की स्थिति इस प्रकार हो कि उनका सप्तम-पंचम से कोई संबंध न हो तो प
व्यवसाय में सफलता का सटीक अध्ययन शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात अक्सर युवाओं के मन में यह दुविधा रहती है कि नौकरी या व्यवसाय में से उनके लिए उचित क्या होगा। इस संबंध में जन्मकुंडली का सटीक अध्ययन सही दिशा चुनने में सहायक हो सकता है। * नौकरी या व्यवसाय देखने के लिए सर्वप्रथम कुंडली में दशम, लग्न और सप्तम स्थान के अधिपति तथा उन भावों में स्थित ग्रहों को देखा जाता है। * लग्न या सप्तम स्थान बलवान होने पर स्वतंत्र व्यवसाय में सफलता का योग बनता है। * प्रायः लग्न राशि, चंद्र राशि और दशम भाव में स्थित ग्रहों के बल के तुलनात्मक अध्ययन द्वारा व्यवसाय का निर्धारण करना उचित रहता है। * प्रायः अग्नि तत्व वाली राशि (मेष, सिंह, धनु) के जातकों को बुद्धि और मानसिक कौशल संबंधी व्यवसाय जैसे कोचिंग कक्षाएँ, कन्सल्टेंसी, लेखन, ज्योतिष आदि में सफलता मिलती है। * पृथ्वी तत्व वाली राशि (वृष, कन्या, मकर) के जातकों को शारीरिक क्षमता वाले व्यवसाय जैसे कृषि, भवन निर्माण, राजनीति आदि में सफलता मिलती है। जल तत्व वाली राशि (कर्क, वृश्चिक, मीन) के जातक प्रायः व्यवसाय बदलते रहते हैं। इन्हें द्रव, स्प्रिट,
चतुर्थ स्थान से जानें आशियाने का सुख अपना घर बनाना और उसमें सुख से रहना हर व्यक्ति का सपना होता है, मगर कई बार अथक प्रयत्नों के बावजूद या तो घर ही नहीं बन पाता, यदि बन जाए तो उसमें रहने पर सुख-शांति नहीं मिलती। आपके भाग्य में घर का सुख है या नहीं, इस बारे में कुंडली से स्पष्ट संकेत मिल सकते हैं। घर का सुख देखने के लिए मुख्यत: चतुर्थ स्थान को देखा जाता है। फिर गुरु, शुक्र और चंद्र के बलाबल का विचार प्रमुखता से किया जाता है। जब-जब मूल राशि स्वामी या चंद्रमा से गुरु, शुक्र या चतुर्थ स्थान के स्वामी का शुभ योग होता है, तब घर खरीदने, नवनिर्माण या मूल्यवान घरेलू वस्तुएँ खरीदने का योग बनता है। गृह-सौख्य संबंधी मुख्य सिद्धांत 1 . चतुर्थ स्थान में शुभ ग्रह हों तो घर का सुख उत्तम रहता है। 2 . चंद्रमा से चतुर्थ में शुभ ग्रह होने पर घर संबंधी शुभ फल मिलते हैं। 3 . चतुर्थ स्थान पर गुरु-शुक्र की दृष्टि उच्च कोटि का गृह सुख देती है। 4 . चतुर्थ स्थान का स्वामी 6, 8, 12 स्थान में हो तो गृह निर्माण में बाधाएँ आती हैं। उसी तरह 6, 8, 12 भावों में स्वामी चतुर्थ स्थान में हो तो गृह सुख बाधित हो जाता है। 5 .
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जन्मपत्रिकामेंशिक्षाकेयोग आज जीवन के हर मोड़ पर आम आदमी स्वयं को खोया हुआ महसूस करता है। विशेष रूप से वह विद्यार्थी जिसने हाल ही में दसवीं या बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की है, उसके सामने सबसे बड़ा संकट यह रहता है कि वह कौन से विषय का चयन करे जो उसके लिए लाभदायक हो। एक अनुभवी ज्योतिषी आपकी अच्छी मदद कर सकता है। जन्मपत्रिका में पंचम भाव से शिक्षा तथा नवम भाव से उच्च शिक्षा तथा भाग्य के बारे में विचार किया जाता है। सबसे पहले जातक की कुंडली में पंचम भाव तथा उसका स्व
ग्रह निर्धारित करते हैं आपका व्यक्तित्व (भाग 3) पिछले दो लेखों भाग 1 और भाग 2 के माध्यम से आपने यह जाना कि मानव मस्तिष्क जो कि ज्योतिष अनुसार 42 विभिन्न केन्द्रों मे विभाजित है, जिन के द्वारा मनुष्य के अन्दर विभिन्न प्रकार के गुण-दोषों का विकास होता है। अब इस पोस्ट के जरिए ये समझने की चेष्टा करते हैं कि जन्मकुंडली में किस प्रकार विभिन्न ग्रह अपनी स्थिति के द्वारा इन केन्द्रों को स्पंदित करके, मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्धारण करते हैं । 1 . अगर सप्तमेश स्वगृ्ही होकर सप्तम स्थान में ही बैठा हो अथवा तीसरे भाव का स्वामी इस स्थान में स्थित हो तो वह मन में तीव्र अभिलाषाओं की उत्पत्ति का कारण बनता है। ऎसे व्यक्ति के मन मस्तिष्क में असीम ईच्छाएं निरन्तर जन्म लेती रहती हैं। अनुभव सिद्ध है कि चपटे सिर वाले जातक की अभिलाषाएं अधिक होती हैं और तंग सिर वाले की कम। 2 .यदि कुंडली में पांचवें भाव का स्वामी अष्टम स्थान में स्थित हो तो वह मस्तिष्क के अष्ट्म भाग को स्पंदित करते हुए प्रभावित करता है। जिससे जातक के अन्दर दृ्ड निश्चयी प्रवृ्ति का प्रादुर्भाव होता है। ऎसे व्यक्तियों में भीषण से भीषण मुसीबत से
तुला,वृ्श्चिक,धनु,मकर,कुंभ तथा मीन राशीयों का स्वभावगत जीवन फल चंद्रमा के प्रभाव अनुसार ही किसी भी व्यक्ति की आदतें और रूचियां निर्धारित होती हैं। भारतीय ज्योतिष में चंद्रमा और सूर्य का विशेष महत्व है। क्योंकि इन्हीं के आधार पर काल गणना, सोलह संस्कार, मुहूर्त, तिथि, करण, योग, वार और नक्षत्रों की गणना की जाती है। इनमें भी चंद्रमा को विशेष महत्व प्राप्त है। इसका मुख्य कारण चंद्रमा की गतिशीलता है।यह सवा दो दिन में अपनी राशि परिवर्तित कर लेता है। इन सवा दो दिनों में विश्व में कहीं भी किसी प्राणी का जन्म हो ज्योतिष पद्धति अनुसार वही उसकी राशि होगी, जबकि पाश्चात्य ज्योतिष में सूर्य की राशि से अध्ययन किया जाता है। राशि निर्धारण की भारतीय पद्धति अधिक सूक्ष्म और वैज्ञानिक है। चूंकि चंद्रमा पृथ्वी का निकटस्थ उपग्रह है। यह मन की कल्पनाओं की भांति गतिशील है। इसीलिए वेदों में इसे "चंद्रमा मनसो जात:" कहा है। चंद्रमा की द्वादश राशि अनुसार आपकी आदतें और रूचि कैसी होती हैं, आईए जानते हैं तुला,वृ्श्चिक,धनु,मकर,कुंभ और मीन राशी के बारे में- तुला राशि: तुला राशि वाले सहायता एवं सहयोग करने वाले
मेष,वृ्ष,मिथुन,कर्क,सिंह तथा कन्या राशीयों का स्वभावगत जीवन फल चंद्रमा के प्रभाव अनुसार ही किसी भी व्यक्ति की आदतें और रूचियां निर्धारित होती हैं। भारतीय ज्योतिष में चंद्रमा और सूर्य का विशेष महत्व है। क्योंकि इन्हीं के आधार पर काल गणना, सोलह संस्कार, मुहूर्त, तिथि, करण, योग, वार और नक्षत्रों की गणना की जाती है। इनमें भी चंद्रमा को विशेष महत्व प्राप्त है। इसका मुख्य कारण चंद्रमा की गतिशीलता है।यह सवा दो दिन में अपनी राशि परिवर्तित कर लेता है। इन सवा दो दिनों में विश्व में कहीं भी किसी प्राणी का जन्म हो ज्योतिष पद्धति अनुसार वही उसकी राशि होगी, जबकि पाश्चात्य ज्योतिष में सूर्य की राशि से अध्ययन किया जाता है। राशि निर्धारण की भारतीय पद्धति अधिक सूक्ष्म और वैज्ञानिक है। चूंकि चंद्रमा पृथ्वी का निकटस्थ उपग्रह है। यह मन की कल्पनाओं की भांति गतिशील है। इसीलिए वेदों में इसे "चंद्रमा मनसो जात:" कहा है। चंद्रमा की द्वादश राशि अनुसार आपकी आदतें और रूचि कैसी होती हैं,आईए जानते हैं-मेष,वृ्ष,मिथुन,कर्क,सिंह,कन्या राशीयों के बारे में मेष राशि : चंद्रमा की इस राशि पर स्थिति से व्यक्ति का त
राशियां और धन [ मेष लगन :-मेष लगन वालों के लिये सूर्य शुभ,और धनदायक ग्रह है,क्योंकि त्रिकोण का स्वामी है,चन्द्र यद्यपि चौथी भाव का स्वामी है,है इसलिये मोक्ष का कारक होने के कारण अपनी नैसर्गिक शुभता को खो देता है,अत: पापी समझा जायेगा.अत: इसका छठे भाव या बारहवेम भाव में कमजोर होकर बिराजना धन तथा सुख के लिये अशुभ हो जायेगा,मंगल लगनेश है और अष्टमेश भी,हमेशा शुभ फ़ल देता है,बुध तीसरे और छठे भाव का स्वामी है,दोनो ही पापी भाव हैं,यदि केन्द्र या त्रिकोण में बलवान होगा,तो धन के सम्बन्ध में अशुभ फ़ल देगा.गुरु नवम और बारहवें भाव का स्वामी है,गुरु ट्रांसफ़र का प्रभाव रखने के कारण बहुत ही अच्छा फ़ल देगा,केन्द्र और मुख्य त्रिकोण में गुरु की स्थिति धन,भाग्य,राज्य कॄपा आदि देती है,शुक्र दूसरे और सातवें भाव का स्वामी है,लेकिन शुभ नही है,यदि बलवान होगा तो मंगल के प्रभाव के कारण हमेशा मानसिक और धन वाली प्रताडना देगा,लेकिन शुभ त्रिकोणाधिपति से सम्बन्ध रखता है,मतलब लगन से सम्बन्ध का प्रभाव शरीर के एचाहत,पंचम से सम्बन्ध परिवार से सम्बन्ध,और नवें भाव से सम्बन्ध पूर्वजों की मर्यादा और धर्म से लगाव रखना,यह सब
ग्रह निर्धारित करते हैं आपका व्यक्तित्व ईश्वर नें इस ब्राह्मंड को पूर्णतय: स्वचालित बनाया है। इसमे विधमान समस्त ग्रह अपने निश्चित मार्ग पर निश्चित गति से निरंतर भ्रमणशील रहते हैं। और भ्रमण के दौरान ये किसी व्यक्ति की जन्मकुडंली के जिस भाव में स्थित होते हैं. उसी से सम्बद्ध उस व्यक्ति के मस्तिष्क के भाग को प्रभावित करते हैं। आज के वैज्ञानिक, डाक्टर, शरीर रचना विशेषज्ञ, मनोरोग चिकित्सक इत्यादि भी एक स्वर में स्वीकारने लगे हैं कि मानव मस्तिष्क में सोचने, सीखने, याद रखने, अनुभव करने, प्रतिक्रिया देने आदि अनेक मानसिक शक्तियों तथा प्रक्रियायों के अलग अलग केन्द्र हैं। यूं तो मानव मस्तिष्क में सहस्त्रों भाग हैं, जिनमे असंख्य सूक्ष्म नाडियां होती है। किन्तु वैदिक ज्योतिष अनुसार मस्तिष्क को ४२ भागों में विभाजित किया गया है। जिसके प्रथम भाग में कामेच्छा, द्वितीय में विवाह इच्छा, तृ्तीय में वात्सल्य एवं प्रेमानुराग, चतुर्थ में मैत्री एवं विध्वंस, पंचम में स्थान प्रेम(अपनी जन्मभूमी एवं देश प्रेम), छठे भाग में लगनपूर्ण समर्पण, सातवें में अभिलाषा, आठवे भाग में दृ्डता(विचारों की मजबूती),नवम भाग में प
ग्रह निर्धारित करते हैं आपका व्यक्तित्व (भाग 2) पिछले लेख में आपने जाना कि भारतीय वैदिक ज्योतिष में मानव मस्तिष्क को 42 विभिन्न भागों में बांटा गया है। जो कि सोचने,सीखने,याद रखने,अनुभव करने,प्रतिक्रिया करने आदि अनेक मानसिक शक्तियों तथा प्रक्रियाओं के अलग-अलग केन्द्र हैं।अब जानते हैं कि किस प्रकार किसी मनुष्य की जन्मकुंडली के भिन्न भिन्न भावों में बैठे हुए ग्रह उस व्यक्ति के मस्तिष्क को नियंत्रित एवं संचालित करते हैं।जिसके कारण उस मनुष्य में विभिन्न मानसिक शक्तियों,गुण-दोषों,प्रवृ्तियों आदि का विकास होता है। 1. अगर कुण्डली के लग्न अर्थात प्रथम भाव में दशमेश अर्थात दसवें भाव का स्वामी विधमान हो तो वह मस्तिष्क के प्रथम(कामेच्छा), द्वितीय(विवाहेछा) तथा 37वें भाग(राग-विराग) को प्रभावित करता है, जिस कारण उस मनुष्य के मस्तिष्क में विवाह की तीव्र इच्छा जागृ्त होती है। दशमेश द्वारा प्रेरित प्रणय मध्यम श्रेणी का होता है। जिस कारण प्रणय पात्र से प्रेम एवं सहानुभूति की अपेक्षा उसमे कामुकता और स्वार्थलोलुपता की भावना ज्यादा रहती है। 2. यदि द्वितीय भाव में भाग्येश अर्थात नवम भाव का स्वामी हो तो मस्
ज्योतिष के अनुसार अशुभ जन्म समय (Inauspicious birth time as per astrology) हम जैसा कर्म करते हैं उसी के अनुरूप हमें ईश्वर सुख दु:ख देता है। सुख दु:ख का निर्घारण ईश्वर कुण्डली में ग्रहों स्थिति के आधार पर करता है। जिस व्यक्ति का जन्म शुभ समय में होता है उसे जीवन में अच्छे फल मिलते हैं और जिनका अशुभ समय में उसे कटु फल मिलते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह शुभ समय क्या है और अशुभ समय किसे कहते हैं आइये जानें। अमावस्या में जन्म: (Birth during a new moon day) ज्योतिष शास्त्र में अमावस्या को दर्श के नाम से भी जाना जाता है। इस तिथि में जन्म माता पिता की आर्थिक स्थिति पर बुरा प्रभाव डालता है। जो व्यक्ति अमावस्या तिथि में जन्म लेते हैं उन्हें जीवन में आर्थिक तंगी का सामना करना होता है। इन्हें यश और मान सम्मान पाने के लिए काफी प्रयास करना होता है। अमावस्या तिथि में भी जिस व्यक्ति का जन्म पूर्ण चन्द्र रहित अमावस्या में होता है वह अधिक अशुभ माना जाता है। इस अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए घी का छाया पात्र दान करना चाहिए, रूद्राभिषेक और सूर्य एवं चन्द्र की शांति कराने से भी इस तिथि में जन्म के अशुभ
कोई अंकशास्त्र की सत्यता को परखना चाहता है तो उसे थोड़ी गहराई से अंक 4 (जन्म तिथि 4,13,22,31) तथा अंक 8 (जन्म तिथि 8,17,26) वाले लोगों के जीवन का अध्ययन करना पड़ेगा। वैसे तो सभी मनुष्यों के जीवन पर उनकी जन्म तिथि या जन्मतिथि से संबंधित अंकों का प्रभाव हमेशा होता है परंतु अंक 4 और 8 वाले इस मामले में कुछ अधिक ही प्रभावित होते हैं। हालांकि अंकशास्त्र में इन अंकों को अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता, इन अंकों से प्रभावित व्यक्तियों को भी अंकशास्त्री हमेशा इनसे बचने की सलाह देते हैं परंतु जमीन से आसमान की बुलंदियों पर पहुंचाने की शक्ति भी इन अंकों में ही होती है और यही विरोधाभास इन अंकों कों अंकशास्त्रियों के शोध पत्रों में अधिक जगह दिलाता है। आप किसी का नाम अंक जोिड़ये यदि उसका अंक 4 या 8 आये तो उसकी जन्मतिथि पूछ लीजिये अक्सर वो इन्हीं अंकों से संबंधित होती है। एक उदाहरण देखिये : अमेरिका के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बराक ओवामा का जन्म 4 अगस्त 1961 को हुआ। जन्म तिथि 4 1961 को आपस में जोड़ने से 17 आता है और 17 को फिर आपस में जोड़ने पर अंक 8 आ जाता है। अगस्त माह का क्रमांक 8 है। इनका प्रचलित नाम अं
प्रेम और ज्योतिष प्रेम एक पवित्र भाव है। मानव मात्र प्रेम के सहारे जीता है और सदैव प्रेम के लिए लालयित रहता है। प्रेम का अर्थ केवल पति-पत्नी या प्रे‍मी-प्रेमिका के प्रेम से नहीं लिया जाना चाहिए। मनुष्य जिस समाज में रहता है, उसके हर रिश्ते से उसे कितना स्नेह- प्रेम मिलेगा, यह बात कुंडली भली-भाँति बता सकती है। कुंडली का पंचम भाव प्रेम का प्रतिनिधि भाव कहलाता है। इसकी सबल स्थिति प्रेम की प्रचुरता को बताती है। इस भाव का स्वामी ग्रह यदि प्रबल हो तो जिस भाव में स्थित होता है, उसका प्रेम जातक को अवश्य मिलता है। * पंचमेश लग्नस्थ होने पर जातक को पूर्ण देह सुख व बुद्धि प्राप्त होती है। * पंचमेश द्वितीयस्थ होने पर धन व परिवार का प्रेम मिलता है। * तृतीयस्थ पंचमेश छोटे भाई-बहनों से प्रेम दिलाता है। * पंचमेश चतुर्थ में हो तो माता का, जनता का प्रेम मिलता है। * पंचमेश पंचम में हो तो पुत्रों से प्रेम मिलता है। * पंचमेश सप्तम में हो तो जीवनसाथ‍ी से अत्यंत प्रेम रहता है। * पंचमेश नवम में हो तो भाग्य साथ देता है, ईश्‍वरीय कृपा मिलती है। पिता से प्रेम मिलता है। * पंचमेश दशमस्थ होकर गुरुजनों, अधिकारियों का