कोई अंकशास्त्र की सत्यता को परखना चाहता है तो उसे थोड़ी गहराई से अंक 4 (जन्म तिथि 4,13,22,31) तथा अंक 8 (जन्म तिथि 8,17,26) वाले लोगों के जीवन का अध्ययन करना पड़ेगा। वैसे तो सभी मनुष्यों के जीवन पर उनकी जन्म तिथि या जन्मतिथि से संबंधित अंकों का प्रभाव हमेशा होता है परंतु अंक 4 और 8 वाले इस मामले में कुछ अधिक ही प्रभावित होते हैं। हालांकि अंकशास्त्र में इन अंकों को अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता, इन अंकों से प्रभावित व्यक्तियों को भी अंकशास्त्री हमेशा इनसे बचने की सलाह देते हैं परंतु जमीन से आसमान की बुलंदियों पर पहुंचाने की शक्ति भी इन अंकों में ही होती है और यही विरोधाभास इन अंकों कों अंकशास्त्रियों के शोध पत्रों में अधिक जगह दिलाता है। आप किसी का नाम अंक जोिड़ये यदि उसका अंक 4 या 8 आये तो उसकी जन्मतिथि पूछ लीजिये अक्सर वो इन्हीं अंकों से संबंधित होती है। एक उदाहरण देखिये : अमेरिका के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बराक ओवामा का जन्म 4 अगस्त 1961 को हुआ। जन्म तिथि 4 1961 को आपस में जोड़ने से 17 आता है और 17 को फिर आपस में जोड़ने पर अंक 8 आ जाता है। अगस्त माह का क्रमांक 8 है। इनका प्रचलित नाम अं
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अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्। सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।। अकस्मात् धन प्राप्ति योग (क) यदि द्वितीयेश और चतुर्थेश शुभ ग्रह (बुध-शुक्र) की राशि में शुभग्रहों से युत या दृष्ट हो। (ख) पंचम भाव में चन्द्रमा पर शुक्र की पूर्ण दृष्टि हो। (ग) 1, 2, 11 वें भाव के स्वामियों में लग्न का स्वामी दूसरे घर में, दूसरे का स्वामी ग्यारहवें में तथा ग्यारहवें का स्वामी लग्न में हो। (घ) एकादशेश और द्वितीयेश चतुर्थस्थ होंऔर चतुर्थेश शुभग्रह की राशि में शुभयुत या दृष्ट। (ङ) धनेश अष्टम भाव में हो। (च) लग्न का स्वामी धनस्थान में हो, लाभ-स्थान में हो और लाभेश लग्न में हो। (जातक पारिजात) (छ) लग्नेश शुभग्रह हो और धन स्थान में स्थित हो या धनेश आठवें स्थान में हो। (ज) यदि पंचम स्थान में शुक्र से दृष्ट चन्द्रमा हो। (झ) यदि धन भाव का स्वामी शनि (धनु, मकर लग्न) 4, 8 या 12वें भाव में हो तथा बुध सप्तम भाव में स्वगृही होकर बैठा हो। अकस्मात् धन नाश (क) दूसरे भाव में कर्क का चन्द्रमा शनि के नक्षत्र पर स्थित हो और अष्टम भाव में स्वगृही शनि चन्द्र के नक्षत्र पर स्
क्या बताते हैं कुंडली के 12 भाव
क्या बताते हैं कुंडली के 12 भाव ज्योतिष में मान्य बारह राशियों के आधार पर जन्मकुंडली में बारह भावों की रचना की गई है। प्रत्येक भाव में मनुष्य जीवन की विविध अव्यवस्थाओं, विविध घटनाओं को दर्शाता है। आइए इनके बारे में विस्तार से जानें। 1. प्रथम भाव : यह लग्न भी कहलाता है। इस स्थान से व्यक्ति की शरीर यष्टि, वात-पित्त-कफ प्रकृति, त्वचा का रंग, यश-अपयश, पूर्वज, सुख-दुख, आत्मविश्वास, अहंकार, मानसिकता आदि को जाना जाता है। 2. द्वितीय भाव : इसे धन भाव भी कहते हैं। इससे व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, परिवार का सुख, घर की स्थिति, दाईं आँख, वाणी, जीभ, खाना-पीना, प्रारंभिक शिक्षा, संपत्ति आदि के बारे में जाना जाता है। 3. तृतीय भाव : इसे पराक्रम का सहज भाव भी कहते हैं। इससे जातक के बल, छोटे भाई-बहन, नौकर-चाकर, पराक्रम, धैर्य, कंठ-फेफड़े, श्रवण स्थान, कंधे-हाथ आदि का विचार किया जाता है। 4. चतुर्थ स्थान : इसे मातृ स्थान भी कहते हैं। इससे मातृसुख, गृह सौख्य, वाहन सौख्य, बाग-बगीचा, जमीन-जायदाद, मित्र छाती पेट के रोग, मानसिक स्थिति आदि का विचार किया जाता है। 5. पंचम भाव : इसे सुत भाव भी कहते हैं। इससे स
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